शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

मूसबिल्ला : एक संदेश सोशल मीडिया से : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 नवंबर 2016, शुक्रवार

(आज हमारे वाट्स एप्प पर हमारेमनीष भाई का एक संदेश मिला । डॉ० मनीष श्रीवास्तव एक बड़े सरकारी उपक्रम मे अधिकारी है और सामयिक सामाजिक मुद्दो पर गहरी पकड़ रखते है।हमे यह शोध व्यंग्य अच्छा लगा तो शेयर कर रहा हूँ।)

                     मुसबिल्ला

           चूहा एक सामाजिक प्राणी होता है । इनका एक पूरा समुदाय होता है और ये भी मधु मक्खियों की तरह एक पूर्णतया विकसित समाज में रहते हैं जिसमे survival का मूल मन्त्र परस्पर सहयोग होता है । सब चूहे मिल के जमीन के नीचे एक colony बनाते हैं । उसमे बाकायदा घर बने होते हैं । माँ और बच्चों के कक्ष अलग होते हैं । एक अन्नागार होता है जहां एक जगह 5 से 10 kg तक गेहूं तक एकत्र कर लेते हैं चूहे । colony में घुसने और निकलने के बीसियों रास्ते होते हैं ।
         मुसहर समुदाय इन चूहों को पकड़ने मारने में बड़ा expert होता है ।
      सबसे पहले कोई सयाना आदमी चूहों के बिल देख के अनुमान लगाता है कि कितनी बड़ी colony है । कितने चूहे होंगे और इस colony में कितना अनाज मिलेगा ।
        उसके बाद कवायद शुरू होती है बिल खोज खोज के उनका मुह बंद करने की । कोई पुराना कपड़ा या सनई ठूंस के बिल का मुह बंद कर देते हैं । फिर किसी एक बिल में बाल्टियों से पानी भरना शुरू करते हैं । इसे आप flooding method कह सकते हैं । चूहे जब डूबने लगते हैं तो बिलों से निकल के बाहर भागते हैं । अब शिकारी का कौशल ये कि सभी बिल खोज के निकल भागने के सारे रास्ते बंद कर दे और सिर्फ दो बिल खुले छोड़े । एक पानी भरने को और दूसरा निकल के भागने का रास्ता । बस उसी बिल के पास सब मुसहर पतली पतली डंडियाँ ले के खड़े रहते है  । चूहा निकला और य्य्य्ये मारा ........ एक आध चूहा निकल के भाग लेता है ....... उसे दो तीन लौंडे दौड़ा के घेर के मार लेते हैं । दौड़ा के मारने का मज़ा अलग ही आता है ।
        उसके बाद कवायद शुरू होती है उन बिलों को खोदने की । मुसहर समुदाय एक colony से 10 - 20 किलो तक गेहूं एकत्र कर लेता हैं । इसके अलावा अगर ठीक ठाक colony हो तो 15 - 20 तक चूहे मार लेते हैं जिनमे कई चूहे तो आधा आधा किलो तक के होते हैं । जी हाँ ....... चूहों के शिकार में छोटी चुहिया पे focus नहीं होता । वो तो यूँ ही हल्ले गुल्ले में और पानी में डूब के या फिर खुदाई में मर जाती हैं । शिकारी की निगाह मोटे ताजे चूहे जिन्हें " घूस " कहा जाता है , उनपे होती है । ऐसे खेत जहां पानी दूर हो वहाँ मुसहर एक अलग तकनीक इस्तेमाल करते हैं जिसे आप smoking कह सकते हैं । किसी एक बिल के पास आग जला के पूरी colony को धुएँ से भर देते हैं । चूहे धुंए के कारण दम घुटने के कारण बाहर भागते हैं और मारे जाते है ।
flooding method में अनाज भीग जाता है जिसे फिर बाद में धो के सुखाना पड़ता है । smoking में अनाज सूखा और सुरक्षित निकल आता है ।
        मोदी भी यूँ समझ लीजे कि मुसहर बने चूहे ही मार रहे हैं । उनका focus मोटे चूहों पे है । ये जो लाख दो लाख या फिर 10 - 20 - 50 लाख या 2 - 4 करोड़ हेरा फेरी कर के या लोगों को बैंक की लाइन में खडा करके exchange करा रहे या वो जो बैंक मेनेजर से मिली भगत कर 2 - 4 करोड़ काले को सफ़ेद कर रहे ये तो छोटी चुहिया हैं।
असली शिकार तो मोटे चूहों का होगा । उनको दौड़ा के मारने में मज़ा आयेगा ।।
         ये जो सरकार रोज़ रोज़ नियम बदल रही है न ....... ये तो चूहे बिल्ली का खेल है ....... सरकार खोज खोज के बिल बंद कर रही है ........ कहाँ से भागोगे बेटा ??????
               31 दिसंबर के बाद देखना ........ जब तहखानों से 50 - 100 करोड़ और 1000 करोड़ या 5 - 10 हज़ार करोड़ वाले चूहे निकलेंगे ........
          डंडा ले के तैयार रहिये ।
(बनारस, 25 नवंबर 2016, शुक्रवार)
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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

एक तालाब की कहानी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 नवंबर 2016,गुरूवार

एक तालाब की कहानी

                  गाँव के बाहर एक तालाब था...... बहुत ही विशाल... लम्बा-चौड़ा... पानी से लवालव भरा हुआ...
        जितना पुराना गाँव का इतिहास था.... उतना ही पुराना तालाब भी था।
       किसी को नहीं पता कि यह तालाब कब से था?..... किसने बनाया था?
      इसे जिसने भी देखा था.....  ऐसे ही देखा था..... इसी रूप में.....
       तालाब में बहुत सारी मछलियाँ रहती थी..... हर किस्म की..... छोटी-बड़ी..... रंग-विरंगी.....
मछलियाँ इस तालाब की शोभा थी। वह एक झुंड में अपने परिवार के साथ रहती..... तालाब के स्वच्छ, निर्मल जल में इधर-उधर भ्रमण करती..... इतराती-इठलाती......  जल-क्रीड़ा करती।
इन छोटी-बड़ी मछलियों के लिए उस बड़े तालाब में दाने-चारे की कोई कमी न थी..... इस मनोहारी उपयुक्त वातावरण में मछलियों के झुंड खुश थे, फल-फूल रहे थे..... एक साथ बढ़ रहे थे.....
         पर न जाने ऐसा क्या हुआ कि मछलियों के इस सुखी जीवन को किसी की नजर लग गई.....
          इन छोटी-छोटी मछलियों के झुंड में कुछ मछलियाँ बहुत जल्दी ही एक विशाल बड़े मछली के रूप में इसके बीच आ गई...... यह अपने झुंड में से ही अचानक बढ गई या बाहर से इन विशाल मछलियों को किसी ने तालाब में छोड़ दिया..... पता नहीं।
    कैसे क्या हुआ...... भगवान जाने।
तालाब में ये विशाल मछली संख्या में तो थोड़े थे पर पूरे तालाब पर इसका अधिकार हो गया था। यह छोटे-छोटे मछलियों के हिस्से का चारा भी चट करने लग गए..... छोटे मछलियों को अपना ग्रास बनाने लगे....
         छोटे-छोटे मछलियों का जीना मुश्किल होने लगा...... चारे की कमी होने लगी..... हर समय बड़े मछलियों द्वारा खाए जाने का डर सताने लगा।
पर्याप्त चारे के अभाव में छोटी-छोटी मछलियाँ कमजोर होने लगी..... दम तोड़ने लगी...... उसकी वृद्धि रूक गई.....
         अब तालाब में पहले वाली रौनक न थी...... वो धमाचौकड़ी न थी..... वो चंचलता न थी......
शनैः शनैः स्थिति वद से वदतर होने लगी.....
गाँव वाले चिंतित रहने लगे...... गाँव प्रधान भी इससे दुखी थे....
       क्या किया जाए किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। समस्या विकराल थी पर इसका कोई स्थाई समाधान किसी के पास न था.....
        गाँव प्रधान बड़ा जीवट था। वह हर हाल में इस समस्या का निदान चाहता था..... वह तालाब की वही पहले वाली सुंदरता को वापस लाना चाहता था.....वह तालाब के छोटी-छोटी मछलियों के दुख को दूर करना चाहता था।

एक रात.....
ग्राम प्रधान के दिमाग में सहसा एक उपाय सूझा। वह उठा और तालाब के सभी जल निकासी मार्ग पर जाल लगाया और फिर एक साथ सभी मार्ग को खोल दिया। तालाब का जल बहुत तेजी से बाहर आने लगा।
       सुबह होते-होते तालाब का पूरा जल वह चुका था..... जल के अभाव में मछलियाँ तड़प रही थी। छोटी-छोटी मछलियाँ तालाब के दलदल और कीचड़ में घुस कर किसी तरह अपने आप को बचाने लगी। विशाल मछली दल दल में घुस नहीं  पा रही थी..... वह दम तोड़ने लगी।
           विशाल मछली को मारने के चक्कर में छोटी-मछली भी कष्ट झेल रही थी। वावजूद इसके छोटी मछलियाँ इस कष्ट में भी खुश थी। विशाल मछलियों को वे सामने तड़प-तड़प कर मरते देख रही थी। उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। उनकी समस्या का स्थाई समाधान हो रहा था। अब उन्हें फिर से पर्याप्त चारा मिलने लगेगा..... उसका जीवन सुखमय होने वाला था..... उसे अपना भविष्य उज्ज्वल दिख रहा था।
       जब सारी विशाल मछलियों ने दम तोड़ दिया तो गांव प्रधान ने तालाब को फिर से जल से लबालब भरवा दिया...... छोटी-छोटी मछलियों का कष्ट दूर हो गया।
वर्षों की समस्या का स्थाई समाधान हो गया था।
(बनारस, 23 नवंबर 2016, गुरूवार)

बुधवार, 23 नवंबर 2016

भारत पाक संबंध पर जे एन दीक्षित की शोधपरक सर्वकालिक पुस्तक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, बनारस, 23 नवंबर 2016, बुधवार

भारत-पाक संबंध का शोधपूर्ण विश्लेषण

   इधर पाकिस्तान की तरफ से दहशतगर्दो व सैनिकों की कार्यवाहियॉ काफी बढ़ती जा रही है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश मे राष्ट्रवाद व आत्मविश्वास की लहर के चलते पाकिस्तान अब सीधी कार्यवाही की हिम्मत न कर ऩापाक काम करने मे लगा हुआ है जो इस्लामिक उसूलों के साथ मानवता के भी खिलाफ है। एक आम इंसान के तौर पर हम सोचते है कि पाकिस्तान की यह कायराना काम काश्मीर मे लगातार मिल रहीअसफलता पर खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने वाला कदमताल है। पढ़े, लिखे अमनपसंद शहरी भारत- पाकिस्तान संबंधों के बारे मे अकसर कयास लगाते हैं- पहला, भारत व पाकिस्तान मे आम लोग एक दूसरे के संपर्कों मे आना चाहते है लेकिन सरकारें ही इसे रोकती है; दूसरा भारतीयों और पाकिस्तानियों की नई पीढ़ी पुराने पूर्वाग्रहों को तोड़ सकती है; तीसरा, सॉस्कृतिक व बौद्धिक संपर्क के समर्थन से सामान्य आर्थिक व तकनीकी सहयोग संबंधों मे सुधार ला सकता है। परंतु पिछले दिनो फिर पाक की नापाक हरकतों की पुनरावृत्ति, आतंकी घटनाओं, व पाक की बेशर्मी ने इन सारे कयासो पर लगभग पूर्णविराम लगाते हुये एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। इनमे पाकिस्तानी कलाकारों की भूमिका भी बेहद पक्षपातपूर्ण व सांस्कृतिक स्वभाव के विपरीत रही।
प्राय: मै भी सोचता हूँ कि जातीयता, संस्कृति, धर्म और भाषा की दृष्टि से इतनी समानता होने के बावजूद भारत और पाकिस्तान का रवैया एक -दूसरे के प्रति सहयोगपूर्ण क्यों नही हैं? या फिर ये समानतायें ही तो शत्रुता उत्पन्न नही करतीहैं?दोनो देशों मे धार्मिक कट्टरवाद के उदय ने संबंधो को कैसे प्रभावित किया है या आगे कैसे प्रभावित करेगीं? भारत और पाकिस्तान- दोनों मे केन्द्र - विमुखी, उप- राष्ट्रीय आवेगों ने द्विपक्षीय संबंधों पर किस तरह प्रभाव डाला है? अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने भारत-पाकिस्तान समीकरण को कैसे परिवर्तित किया है? क्या समय ने भारतीयों और पाकिस्तानियों की युवा पीढ़ी मे विभाजन के कटुअनुभवों को समाप्त कर दिया है? दोनो देशों मे राजनीतिक संस्थानो और शासन प्रकियाओं ने उनके लोगो की मानसिकताओं और प्रवृत्तियों को कैसे प्रभावित किया है?
इन्ही सवालों का बेहतरीन विवेचना किया है भारतीय पूर्व विदेश सचिव एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री जे एन दीक्षित ने अपनी पुस्तक " भारत- पाक संबंध ( युद्ध और शांति में) । श्री जे एन दीक्षित भारत पाक संबधो के बनते बिगड़ते रूपो के साक्षी व प्रेक्षक रहे है। सन 1958 से 1994 तक विदेश सेवा के अधिकारी के रूप मे विभिन्न पदों पर रहते हुये वे स्वयं भी इन संबंधो के भागीदारी मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। 24 दिसंबर 1999को आई सी 814 विमान अपहरण कंधार कांड को भूमिका बना कर मुसर्रफ के जुलाई 2001मे आगरा यात्रा व असफल शिखर वार्ता के उपसंहार के क्रम को समेटे इस पुस्तक मे दीक्षित जी ने पाकिस्तान के जन्म से लेकर अब तक की मौलिक समस्या, चिंतन, जनता को छलावा देकर किये जा रहे प्रपंच, नीयत व स्वभाव का विश्लेषण किया है वह पूरी समस्या का शव विच्छेदन करने के लिये पर्याप्त ही नही बल्कि प्रांसगिक व महत्वपूर्ण है। वे स्वयं महसूस करते है कि हाल के वर्षों मे पाकिस्तान के मुसलमानो मे कट्टरपंथी संघर्षो से स्थिति और भी खराब हुई है। आज भी पाकिस्तान में अहमदियों को गैर मुसलमान मानकर जाति से बहिष्कृत कर दिया गया है। शिया और सुन्नी सिर्फ सैद्धान्तिक स्तर पर नही बल्कि हिंसक  संघर्ष मे गुत्थम गुत्था हो रहे हैं। सिंधी, बलूची और पठानों की गहन पहचानो के  परे जाने मे इस्लाम समर्थ नही हो पाया है जो पंजाबियों के जनसंख्या संबंधी और राजनीतिक प्रभुत्व से अप्रसन्न है। आजादी के साठ साल बाद भी भारत के विभिन्न भागो से पाकिस्तान गये लोग अब भी मोजाहिर ही कहलाते हैं । पाकिस्तानी समाज मे तनाव और चिड़चिड़ापन एक संवेदनशील स्थिति परस्थिर है। वहॉ आज भी लोकतंत्र सैन्यतंत्र के रहमोकरम व मर्जी से चल रहा है ऐसे विषम पाकिस्तानी राजनीति का भारत के प्रतिकूल होना स्वाभाविक है क्योंकि भारत की दुश्मनी, कश्मीर पाने का खयाली पुलाव व एटमबम के बल पर कुछ भी कर जाने की मुगालता ही वे सब्जबाग है जिन्हे दिखा कर पाकिस्तान के जम्हूरियत पर राज किया जा सकता है।
पुस्तक मे दुनिया के बड़े व चौधरी कहे जाने वालो की देशों की भारत पाक संबंधो पर संसय व ढुलमुल नीति पर भी अच्छी चर्चा की गयी है। कश्मीर के साथ ही दोनो देशो के  मध्य अन्य राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक मुद्दे समस्या के वास्तविक तह मे ले जाते हैं।
विधि का अध्यासु होने के नाते मैने संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय व अन्तर्राष्ट्रीय संबधो के आईने से अध्ययन करने पर मुझे लगा कि अंग्रेज जानबूझ कर भारत पाक के बीच यह समस्या बुनियादी तौर पर बोते गये और उन्होने हमारे नीतिनियन्ताओ व सेना को अपेक्षित व कारगर कदम नही उठाने दिया जिससे समस्या ज्यो की त्यों फलती फूलती गयी व आज भी हम इस समस्या रूपी पेड़ के कड़ुवे फल खाने को विवश है।
श्री दीक्षित ने संबंधो के अनुमानो की उपयुक्तता की जॉच करने का प्रयास किया है। उन्होने स्पष्ट किया है कि अब तक विभाजन की यादें धुंधली होती नही दिखी, न ही पूर्वाग्रहों से मुक्ति मिली है। पाकिस्तान भारत के साथ आर्थिक संबंधो के बारे मे गंभीर आशंकाओं से ग्रस्त है क्योकि उसे डर है कि एक बड़े पड़ोसी द्वारा उसकाशोषण किया जा सकता है और दबाया जा सकता है। इस सदी के शुरूआती वर्षों में सूचना क्रांति व आर्थिक भूमण्डलीकरण द्वारा यह उम्मीद की जा रही थी कि दक्षिण एशिया के ये दोनो देश अपनी प्रवृत्तियॉ व नीतियॉ संभवत: बदले किन्तु 9/11, संसद पर हमला, ओसामा बिन लादेन का प्रभुत्व, ताज होटल, बेनजीर भुट्टो की हत्या, इस्लामिक आतंकवाद व कंधार प्रकरण ने इन सभी उम्मीदो पर पानी फेर दिया।
श्री जे एन दीक्षित की यह पुस्तक  भारत पाक संबंधो के समस्त पहलूओं को विश्लेषित करती है। वर्ष 2004 मे प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित यह पुस्तक आज  और भी प्रासंगिक इसलिये भी हो जाती है कि आज पुन: कमोबेस वैसी ही परिस्थितियॉ व्याप्त हो चुकी है। पठानकोट एअरबेस पर हमला,  हाफिज सईद व मसूद अजहर की पाकिस्तान की राजनीति मे बढ़ती दखलंदाजी, नवाजशरीफ की धूमिल पड़ती राजनीति व राहिल शरीफ की महत्वाकांक्षा के साथ साथ भारतीय सर्जिकल स्ट्राईक व विमुद्रीकरण के चलते पाक की बौखलाहट ने समस्या को फिर से तनाव के मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया है ऐसे मे इस किताब को पढ़ना  और भी समीचीन लगा।

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

जयंती जैन की "तनाव छोड़ो सफलता पाओ" के जिक्र में : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 21नवंबर 2016, सोमवार

हाल मे ही एक मित्र ने जयंती जैन की लिखी पुस्तक तनाव छोड़ो सफलता पाओ पढ़ने के लिये सुझाव दिया। प्रेमचंद पुस्तकालय मे दिखी तो राजीव से मॉग लाया। हिन्दी मे तनाव प्रंबन्धन पर एक सरल व सहज पुस्तक लिथा है जयंती ने।जेएनयू मे पढ़े जयंती राजस्थान सरकार मे वाणिज्यिक कर उपायुक्त है और नौकरी के साथ साथ शौकिया लेखन करते है साथ ही साथ वे तपोवन आश्रम  उदयपुर मे समग्र स्वास्थ्य शिविर का भी आ
आयोजन करते है इन शिविरो मे आयुर्वेद, घरेलू चिकित्सा, प्राणिक हीलिंग,  मनोचिकित्सा,योग व प्राणायाम द्वारा आरोग्य आनंदम चलाया जाता है। इन शिविरो व व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही यह पुस्तक लिखी गयी है।
अभी तक तवाव प्रबंधन पर लिखी अधिकांशत: पुस्तके पश्चिमी विचारधाराओं व पश्चिमी देशों के घटनाओं व अनुभवो पर आधारित रही है पर जयंती ने भारतीय परिवेश व समाज के अनुभव व घटनाओं को अपने लेखन मे शामिल किया है जो अपने व अपने से जुड़ाव प्रकट करती हैं। योग व प्राणायाम हमारे जीवन संस्कृति के अभिन्न अंग है, व श्वास प्रश्वास तथा योगनिद्रा, आत्मावलोकन के बारे मे हमारे प्राचीन मनीषीयों ने हमे बताया है पर आने वाली पीढ़ी तनाव ग्रस्त होने पर इनका अनुपालन करने के बजाय  पशचिमी ग्यान पर चल रहे चिकित्सा केन्द्रो मे जा कर  नींद व बेहोशी की दवाये लेते है जबकि हमारा शरीर स्वयं मे एक नियंत्रक व नियामक तंत्र है बस उसे क्रियाशील किये जाने की आवश्यकता है। यह बात बेहद सहज ढंग से बताया है जयंती जैन ने।
     तनाव एक मानसिक स्थिति है, घटनायें सदैव तनाव का कारण नही है। कभी कभी तो यह हमारे प्रगति व विकास मे सहायक होती है। महत्वपूर्ण यह है कि आप घटनाओं को किस रूप मे लेते हैंऔर उससे कैसे प्रभावित होते है। घटना की व्याख्या एवं विश्लेषण से हमारा रवैया तय होता है। हमारा रवैया ही तनाव होने व न होने का कारण है। पुस्तक मे दी गयी हम सबको तनाव प्रबंधन की ज्यादातर विधियों से हम पूर्व मे अवगत हैपरंतु तनावग्रस्त होने पर हम प्राय: इनका उपयोग नही कर पाते क्योंकि समग्र रूप से हम इनके परिणाम को याद नही रख पाते। तनावग्रस्त होने पर हम अपने विपुल उर्जा भण्डार का भी पूरा उपयोग नही कर पाते हैं। अदृश्य तनाव भी एक अवरोध है। इस पुस्तक की सहायता से हम परिस्थितियों व व्यक्तियों के प्रतिअपनी प्रतिक्रिया और अनुभवों की व्याख्या कर तनाव संबंधी अवयवों को पहचानने व उनका प्रबंधन करने मे सहायता प्रापत कर सकेगें। पुस्तक के अंत मे तनावरोधी कैप्सूल के रूप मे दिये गये उद्धरण, तनाव निवारण मे मददगार संस्थानो की सूची व पढ़ने योग्य पुस्तको की सूची अच्छी लगी।
    हमारे वर्तमान समाज व समय के लिये भारतीय परिवेश मे लिखी गयी जयंती जैन की यह पुस्तक तनाव छोड़ो सफलता पाओं संग्रहणीय व पठनीय है।