मंगलवार, 27 सितंबर 2016

हमारे देश का किसान : भादों की डायरी 24 सितंबर 2016, शनिवार

             उत्तरा और हथिया नखत का सन्धिकाल। कुआर माह में इतना पानी आज कई सालों बाद बरसा ।हमारी भी कई मेड (खांवां)अतिरिक्त पानी का दबाव झेल नही पाये। टूट गए । मोहर फूट गयी । धान के खेत से पानी बाहर न जाय इसी उपक्रम में हम सब लगे है । थोड़ी देर के लिए पानी निबुस गया था,लेकिन अब फिर बरसने लगा . आज तारीख है ।जाना तो होगा ही ।लेकिन फिलहाल निकलने की स्थिति नही है।पानी बरसने लगा फिर। अब हथिया का झपसा बजरी पकाने के लिए ठीक होता है ।धान की बढ़ी हुई पौध गिर गयी । धान फूटने भी लगा है।अब जो पौध गिर गया वह उठ नही पायेगा। उरद, मक्का की फसल कट गई ।लेकिन धूप के आभाव में भुकस जाने का भय सताने लगा है ।तिल्ली अभी खेत में खड़ी है । बाजरा भी काला पड़ गया है। एक सप्ताह के लिए पानी निबुस जाय तो सब अ इति में आ जाय । आज मौसम अच्छा/मनोरम लग रहां है।लेकिन जिनके पास जानवर/पशु हैं उनकी तो सामत है ।जानवरो के लिए कोयर-काँटा करना बहुत मशक्कत है भाई । चारा-पानी इतना आसान नही । जानवर सुबह से खूंटे पर ताक रहे हैं। अपने तो भूखे रहा जा सकता है,लेकिन ये बेजुबान जानवर ?
जरा सा पानी निबुसा की नन्हकू की छेड़ लगी मेमिआने । घूमने की तलब लगी है । सूर्यबली भी ढोर,डांगर लेकर निकल पड़े।जिव आन मान हो जायेगा -अपना भी और जानवरों का भी।
         भगवान ! अब तो निबुस जाओ। हमे बनारस भी जाना है। आज की कचहरी तो यहीं हो गयी ।
                   राजपत सीवान के ओरी वीले बाड़े से कुछ सब्जियॉ तोड़ लाये कोहड़ा,नेनुआ,भिन्डी । आजकल घड़रोज कुछ कम हुए हैं । अब बड़े झुण्ड में नही आते। फुटकरिया को आसानी से हांका जा सकता है। एक किसी ने पडरु छोड़ दिया है-भैसा । अब उसको कइसे हांका जाय ।बहुत ही जिद्दी है।निकलता ही नही,खेत से । उसे मार सकते नही। जिस दिन किसी कसाई के हत्थे चढ़ जाएंगे बच्चू,उसी दिन निजात मिल पाएगी इनसे। अब तो भैस गाभिन करने के लिए हैं  भैसे की जरूरत ही कहॉ हैं? डाग्डर साहब चट से गरम भैंस को सूई लगा कर बीज चढ़ा देते है. दूई मिनट मे भैंस गाभिन. लेकिन ई बेजुबान पशु को जरूरत न होने पर भी तो हम पहेंट नही सकते कसाईबाड़े में. राम राम ई तो जीवहत्या हो जायेगी.
चलो जईसे कुल वैसेही ये भी. कभी किस्मत का लेखा थोड़े ही बदल सकता है. बाकी तो सब रामजी के ऊप्पर है.

यही है किसान की दिनचर्या ।
रोजही की चिन्ता
अनिश्चित भविष्य ।
फिर भी अलमस्त ।
जो होगा देखा जायेगा ।