बुधवार, 17 अप्रैल 2024

महावीर स्वामी

#भगवान_महावीर_स्वामी
सत्य अहिंसा के प्रेरणास्तंभ भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवै तीर्थकर के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें महावीर वर्द्धमान भी कहते है। तीर्थकर का अर्थ सर्वोच्च उपदेशक होता है जो समाज को अपने उपदेशों एवं जीवन चरित्र व कार्यों के माध्यम से एक सही दिशा दिखाये। महावीर स्वामी का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम वैशाली में हुआ था । तत्कालीन महाजनपद वैशाली वर्तमान बिहार प्रदेश में स्थित था। उनकी माता का नाम प्रियकारणी त्रिशला व पिता का नाम सिद्धार्थ था। मान्यताओं के अनुसार महावीर के माता पिता तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ जी के अनुयायी थे। जब महावीर का जन्म होने वाला था उसके पूर्व से ही इंद्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी त्रिशला के गर्भ से महान आत्मा का जन्म होने वाला है, प्रियकारिणी त्रिशला की सेवा के लिये षटकुमारी देवियों को भेजा। रानी त्रिशला ने स्वप्न में ऐरावत हाथी और अनेकों शुभ चिन्ह देखे जिससे यह अनुमान लगाया कि नये तीर्थकर इस पावन धरा पर पुनर्जन्म लेने वाले है। चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन वर्द्धमान का जन्म हुआ। महावीर के जन्म वर्ष में कृषि व्यापार, उद्योग में जबदस्त लाभ हुआ। लोगों को आत्मिक, भौतिक व शारीरिक सुख शान्ति का अनुभव हुआ। इस लिये उनके जन्म पर पूरे राज्य में उत्सव मनाये गये और बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया गया। कुलगुरु सोधमेन्द्र ने उनका नाम नगर में उत्साह व वृद्धि को ध्यान में रख कर 'वर्द्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने उन्हें 'सन्मति' कह कर पुकारा। संगमदेव ने उनके अपरिमित साहस की परीक्षा ले कर 'महावीर नाम से अभिहित किया।
बचपन से ही महावीर सांसारिक क्रिया कलापों के बजाय आध्यात्मिक एवं आत्मिक शांति, ध्यान जैसे कार्यों में अधिक समय बीताते थे। तीस वर्ष की आयु में उन्होंने अपने परिजनों से अनुमति ले कर सभी सांसारिक सम्पतियों, सुख सुविधाओं को त्याग दिया  और आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ कर तपस्या करने लगे। साढ़े बारह वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या के पश्चात उन्हें सर्वज्ञता की प्राप्ति हुई। सर्वग्यता का अर्थ शुद्ध एवं केवल ज्ञान होने से इसे कैवल्यता प्राप्ति भी कहते हैं। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात 'वर्द्धमान' जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में जाने जाने लगे और 'महावीर जैन' के रूप में प्रतिष्ठित हुये। महावीर जैन का अर्थ है वह महावीर जिसने स्वयं हो जान लिया और सर्वस्व को जीत लिया। इसके पश्वात महावीर समाज में अहिंसा सत्य अपरिग्रह की शिक्षा देने लगे। महावीर ने सिखाया कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, ब्रह्‌मचर्य अर्थात शुद्धता एवं अपरिग्रह अर्थात किसी से लगाव व मोह का न होना आध्यात्मिक मुक्ति के लिये आवश्यक है। उन्होंने अनेकांतवाद अर्थात बहुपक्षीय वास्तविकता के सिद्धान्तों की शिक्षा दी। महावीर की शिक्षाओं को उनके प्रमुख शिष्य इंद्रभूति गौतम ने जैन आगम के रूप में संकलित किया था। माना जाता है कि जैन भिक्षुओं द्वारा मौखिक रूप से संप्रेषित ये ग्रंथ ईषा की पहली शताब्दी तक आते आते काफी हद तक विलुप्त हो गये।
महावीर ने जीवन चर्चा के लिये सर्वजन हेतु एक आचार संहिता बनाई जिसमें किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना, किसी भी वस्तु को किसी के दिये बिना स्वीकार न करना, मिथ्या भाषण अर्थात झूठ नहीं बोलना आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, मात्र शारीरिक आवरण के वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना प्रमुख है।
जैन ग्रंथों एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं है। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवे तीर्थकर है जिन्होंने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बना कर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। महावीर ने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति संपन्न करते हुये उद्‌घोष किया कि आँख मूंद कर किसी का अनुकरण या अनुशरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, धर्म रूढ़ि नहीं है, धर्म प्रद‌र्शन नहीं है एवं धर्म किसी के प्रति घृणा एवं द्वेषभाव भी नहीं है। महावीर ने धर्म को कर्म काण्डों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाल धर्मो के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाया। महावीर ने घोषणा किया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिसमें आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परम- शक्ति का अवतार बन कर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन होने में नहीं है बाल्के वह तो बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार तपश्या को अवधि पूर्ण कर कैवल्य प्राप्ति के पश्चात लगभग तीस वर्षों तक महावीर धर्म का प्रचार करते रहे और उनका निर्वाण 527 ईषा पूर्व नालन्दा जिले के पावापुरी में हुआ।
महावीर स्वामी के अनेक नाम है जिनमें अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर प्रमुख है। मान्यता है कि 'जिन' नाम से ही उनके अनुयायियों ने धर्म का नाम जैन धर्म रखा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मो की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह को साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को भूल कर भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। भगवान महावीर के अनुयायी उनके नाम का स्मरण श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। उनका यह मानना है कि महावीर स्वामी ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया अपित मुक्ति की सरल व सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। पूरे भारत में  भगवान महावीर के उपदेशों का पालन करते हुये श्रद्धापूर्वक उनका जन्मदिन महावीर जयंती के रूप में मनाता है।
(दिगंबर जैन मंदिर धर्मशाला मे महावीर जयंती पर उद्बोधन,जिसका प्रसारण #आकाशवाणी वाराणसी द्वारा दिनांक 21अप्रैल 2024 को सायं 5 बजे हुआ।)

शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2023

व्योमवार्ता/ पितृ पक्ष वही जो हमें बुजुर्गों और अपनों के बीच ले जाये.....


#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं......

वह अमेरिका के एक बड़े अस्पताल में कामयाब चिकित्सक थे। अपने जन्मदिन पर उन्हें भारत से पिता के पत्र का इंतजार रहता था। उस साल उनका पत्र जन्मदिन के एक सप्ताह बाद मिला स्नेह से सराबोर पत्र में आदेश भी था,"अब तुम्हें भारत लौट आना चाहिए।आखिर अपने देश और समाज के प्रति भी तुम्हारे कुछ कर्तव्य हैं।' पुत्र ने स्वदेश लौटने का फैसला ले लिया। विदाई- पार्टी में जब इतनी आरामदायक जिंदगी छोड़कर भारत जाने से रोकने की चेष्टा हुई, तो डॉक्टर पुत्र का जवाब था, 'माता-पिता का आदेश क्या होता है, इसको महसूस करने के लिए भारत में पैदा होना होगा।' यह वाक्य डॉ प्रताप चंद्र रेड्डी का है, जो आज अपोलो अस्पताल समूह के मालिक हैं।
जो बात पहले जितनी आसान रही, वह आज उतनी ही मुश्किल होती जा रही है। जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करना, घर के बुजुर्गों व पूर्वजों के प्रति सदैव आदर भाव रखना अब आसान नहीं रह गया। ऐसे दौर मे पितृपक्ष हमें एक संदेश देता है। हमें कुछ याद दिलाता है। लोग इन दिनों एक अलग ही भाव में रहते हैं और श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं,ताक  अपने पूर्वजों से जुड़े रहें। मगर पितृ पक्ष हमसे कुछ सवाल भी करता आज के नौजवा है- क्या हम इसे एक घिसी-पिटी परंपरा मानकर भूल जाना चाहिये और  अपनी सामान्य  जिंदगी जीते रहें।क्या हमें यह नही सोचनाकि चाहिए कि पितृ पक्ष की कल्पना क्यों की गई थी ? क्या हम इससे सीखकर समाज को बेहतर बना सकते हैं? क्या हमारे अंदर भूखों- 'गरीबों का पेट भरने की करुणा इस पक्ष में आ सकती है? क्या हम दरिद्र नारायण के दर्द को समझ सकने की स्थिति में हैं? क्या हमारे अंदर ऐसा इंसान बचा है, जो किसी के एहसान नहीं भूलता ? हमारा देश बुजुगों व पूर्वजों के प्रति कितना संवेदनशील है?
अगर हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें, तो देश में बुजुगों की आबादी दस करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। यह संख्या करीब 13 करोड़, 80 लाख हो गई है, जिसके वर्ष 2031 तक 19.4 करोड़ हो जाने की संभावना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह भी कम ध्यान देने योग्य नहीं है कि केवल 25 फीसदी कंपनियों के पास ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा सुविधाए हैं। ऐसे में, ज्यादातर ग्राहक अपने पर आश्रित माता-पिता और सास-ससुर के लिए स्वास्थ्य बीमा लेने में सक्षम नहीं हैं। एक पक्ष यह भी है कि माता-पिता का बीमा खरीदने
में सक्षम होने के बावजूद कई लोग मुंह मोड़ लेते हैं। भारत सरकार ने 'वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटीजन्स ऐक्ट 2007' (माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख एवं कल्याण अधिनियम 2007) लागू किया है। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान व शांति से जीवन-यापन कर सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 ने भारत में बुजुर्ग जनसंख्या के बढ़ने और देश पर इसके प्रभावों कीपुष्टि भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक) की संख्या सन 2022 में 10.5प्रतिशत थी तो 2050 तक यह 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। देश मे 15करोड़ के बजाय 35 करोड़ बुजुर्ग हो जायेगें। ऐसे मे,पितृपक्ष के समय ही सही, आज के युवाओं को अपने भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए। भारतीयों को यह देखना चाहिए कि दूसरे देश अपने बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? अमेरिका में 'फैमिली मेडिकल केयर ऐक्ट' के मुताबिक, वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए सात दिन तक पेड लीव की सुविधा है। वहीं जापान की तो 40 प्रतिशत जनसंख्या 60 साल से ऊपर की है। वहां सरकार ने 40 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा को जरूरी कर दिया है। कमाल की बात यह है कि माता-पिता की अच्छी सेवा करने वालों को जल्दी पदोन्नत करने का भी सरकारी प्रावधान है। फ्रांस में हरेक शख्स को अपने एक दिन का वेतन बुजुगों के कल्याण-कोष में देना पड़ता है।
पितृ पक्ष पर हमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वह कविता याद आ रही है, 'सूरज डूब रहा है। चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है। एक वृद्ध चिंतित है कि अब भला कौन उन्हें संभालेगा। तभी एक युवा हाथ में एक छोटा- सा दिया लिए उठते हुए कहता है, मैं!'
साभार #नंदितेश_निलय
हिन्दुस्तान,6अक्टूबर2023,शुक्रवार
#व्योमवार्ता http;//chitravansh.blogspot.com

सोमवार, 24 जुलाई 2023

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....../"चलो न,अपने घर"

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....../"चलो न,अपने घर"

सुधा जी अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानती थीं।जहां आजकल बेटे बहुओं द्वारा अपने माता पिता या सास श्वसुर को अपमानित या प्रताड़ित करने की घटनाएं आए दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं,वहां उनका बेटा विकास ,बहू अनाया  उनका और उनके पति लोकेश का बहुत ध्यान रखते थे।दो वर्ष होने को आए थे विकास की शादी को।वह और अनाया मुंबई में एक ही कंपनी में अच्छे ओहदों पर काम कर रहे थे।लोकेश जी पिछले वर्ष ही रिटायर हुए थे और पेंशन के नाम पर मात्र कुछ हज़ार  ही उनको हर माह मिलते थे।लाख मना करने के बावजूद विकास उनके अकाउंट में कुछ रुपए हर माह डाल देता था और समय समय पर उनके ब्लड प्रेशर इत्यादि की दवाइयां उनके घर ऑनलाइन ऑर्डर करके भिजवा देता था।बेटे बहू अक्सर रोज़ ही फोन करके सुधा जी और लोकेश जी के हाल चाल रोज़ रात को ले लेते थे।लोकेश जी और सुधा हापुड़ में अपने पैतृक मकान में रह रहे थे और अपने मकान के ही ग्राउंड फ्लोर पर उन्होंने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया था ताकि मन भी लगा रहे और थोड़ी इनकम भी हो जाए।
विकास से छोटी उनकी एक बेटी वनिता भी थी जिसकी पिछले वर्ष ही शादी हुई थी।वनिता और उसका पति अतुल गुड़गांव में ही मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे थे।
पिछले एक महीने से विकास और अनाया सुधा से आग्रह कर रहे थे कि वह और पापा दोनों कुछ दिन उनके पास आकर मुंबई रह जाएं।रोज़ रोज़ के एक से उबाऊ जीवन से कुछ समय के लिए छुटकारा भी मिल जाएगा ।उधर बेटी वनिता और दामाद जी भी उनको फोन करके कुछ दिन अपने पास रहने के लिए बुलाते रहते थे।
बेटे विकास के पास उसके घर मुंबई दोनों सिर्फ एक दिन के लिए उस समय गए थे जब पिछले वर्ष शिरडी साई बाबा के दर्शन के लिए गए थे और लौटते समय एक दिन बेटे के पास मुंबई रुक गए थे क्योंकि वहीं से उनकी दिल्ली के लिए वापसी की फ्लाइट थी।
इस बार विकास ने जबरन दोनों का फ्लाइट का टिकट बुक करा ही दिया अतः उनको मुंबई आने का प्रोग्राम बनाना ही पड़ा।
अनाया ने खाना ,नाश्ता बनाने के लिए कुक लगा रखी थी। वह रोज़ सुबह ब्रेकफास्ट,लंच और डिनर का मेन्यू कुक को बता कर विकास के साथ कार से ऑफिस निकल जाती और रात सात ,आठ बजे तक ही घर लौट पाती थी।विकास और अनाया दोनों ही फिटनेस फ्रीक और हेल्थ कॉन्शस थे।बहुत कम घी तेल में उनके यहां खाना बनता था, अनाया को अपनी फिगर खराब होने का भी डर लगा रहता था।अपने 3 बीएचके फ्लैट में एक रूम की बालकनी को तो उन्होंने जिम में ही परिवर्तित कर रखा था जहां डेली  एक्सरसाइज करने वाले तमाम इक्विपमेंट्स रखे हुए थे।
लोकेश जी और सुधा जी को ये उबली हुई बिना घी तेल की सब्जियां बिलकुल नहीं अच्छी लगती थीं।सुधा अपने घर तो आए दिन कभी बेसन के गट्टे की सब्ज़ी,कोफ्ते,बड़ी आलू, चिली पनीर इत्यादि बनाती रहती थी क्योंकि लोकेश के साथ साथ उसको स्वयं भी अच्छे तेल मसाले वाली चटपटी सब्जियां और नाश्ते पसंद थे।यह जीरे वाली लौकी,स्प्राउट्स, ओट्स मील वह रोज़ रोज़ खा ही नहीं सकती थी।एक हफ्ते तक तो दोनों ने किसी तरह यह स्वास्थ्यवर्धक पर बेस्वाद खाना खाया फिर एक दिन सुबह सुधा ने आटे में अजवाइन ,नमक और घी का मोइन डाल कर स्वयं गरम गरम मठलियां और नमकपारे नाश्ते में अपने और पति के लिए बनाए। कुछ नमकपारे,मठरी बेटे बहू के लिए एयर टाइट डिब्बे में पैक करके रख दिए।फिर उन्हें याद आया कि विकास को लौकी के कोफ्ते बड़े पसंद हैं।रात में डिनर में उन्होंने कुक से सिर्फ रोटियां सिकवा लीं और स्वयं बड़े मन से ग्रेवी वाले चटपटे लौकी के कोफ्ते तैयार कर दिए।
शाम को बेटा बहू जब लौटे तो चाय के साथ उन्होंने मठरी और अपने साथ लाया हुआ आम का अचार रखा।
" ओह मम्मी जी इतनी खस्ता मठरी !! मेरा वजन इतनी मुश्किल से कम हुआ है,इतना ऑयली खा के फिर से बढ़ जाएगा,कहते हुए अनाया ने बस मठरी का एक कोना तोड़ कर अपने मुंह में डाला और चाय पी कर उठ गई।विकास ने तो मठरी को हाथ भी नहीं लगाया।रात में मसालेदार कोफ्ते देख कर विकास बजाए खुश होने के सुधा जी पे भड़क गया।
" मां,कितनी बार कहा कि आप पापा को इतना ऑयली खाना मत खिलाया करो,और खुद भी मत खाया करो।पापा को ब्लड प्रेशर रहता है,आपकी भी उम्र हो रही है,कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जायेगा तो फालतू में हार्ट रिलेटेड बीमारियों का खतरा बढ़ जायेगा।
और आपको पता है कि हम दोनों सिर्फ आधी एक चम्मच घी में बनी कम मसाले की सब्जियां खाते हैं।आप कुक से वो तो बनवा लेती। ख़ैर,आपने इतने मन से बनाए हैं तो एक टुकड़ा चख लेता हूं।," कह कर उसने रोटी के एक टुकड़े से कोफ्ता चखा और वह और अनाया फ्रिज से दही निकाल कर , रोटी उसी के साथ खा कर डाइनिंग टेबल से उठ गाएं
बेटे बहू से अपनी प्रशंसा सुनने की आस लगायी बैठी सुधा जी का मुंह उतर गया।
वह जानती थीं कि विकास जो कह रहा है,सही कह रहा है,उनके और लोकेश जी के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर ही कह रहा है,पर अंदर ही अंदर उनके मन में कुछ दरक सा गया।
रात में सोने से पहले दोनो उनके कमरे में आए।
" पापा,आपने अपने ब्लड प्रेशर की दवाई खा ली न?मम्मी ,आप बहुत घी तेल खाने लगी हो।परसों आप दोनों का फुल बॉडी चेक अप करवा दूंगा, रात आठ बजे तक कल डिनर कर  लेना," विकास बोला।
" हां,मम्मी जी,कल संडे है।कल आप दोनों को नेशनल पार्क, जुहू बीच और हैंगिंग गार्डन दिखाने ले जायेंगे।", अनाया बोली।
" अच्छा बेटा,ठीक है," सुधा थोड़े उदास स्वर में बोली।गुड नाईट बोल कर दोनों अपने कमरे में सोने चले गए।
अगले दिन संडे को विकास और अनाया देर सुबह तक सोते रहे।आखिर बेचारों को एक ही दिन मिलता था रेस्ट का।उनके ऑफिस में 5 डेज वीक नहीं था।
सुधा जी जबसे आई थीं,देख रही थीं कि विकास के घर में स्थापित लकड़ी के छोटे मंदिर का मुंह दक्षिण की तरफ था,जोकि उनके अपने बुजुर्गों के मुंह से सुनी गई मान्यताओं के अनुसार ठीक नहीं था।यद्यपि सुधा जी स्वयं भी इन बातों को अधिक नहीं मानती थीं पर फिर भी मन में वहम तो आ ही जाता है , अतः घरेलू नौकर से बोल कर उन्होंने उसको वहां से हटवा कर उसके बगल वाली खाली दीवार पे टंगवा दिया ताकि उसका मुंह पूरब की तरफ हो जाए।अब तक अनाया भी उठ चुकी थी।मंदिर को वहां टंगे देख गुस्से में जोर से चिल्ला कर नौकर से बोली," रामदीन,तुमने मुझसे बिना पूछे यह मंदिर इस दीवार पर क्यों टांगा? यहां तो मुझे एक बड़ी फुल साइज पेंटिंग लगानी है,"!
" मेम साब,आंटी जी ने कहा तो मैंने लगा दिया," रामदीन सफाई देते हुए बोला।
" मम्मी जी प्लीज,मेरा फ्लैट मुझे मेरे हिसाब से सेट करने दीजिए।आप हापुड़ में शौक से अपने हिसाब से अपना घर सजाइए।मंदिर का मुंह इधर करने से ड्रॉइंग रूम में बैठे गेस्ट्स ,मेरी खरीदी हुई कीमती नई पेंटिंग देख ही नहीं पाएंगे।
रामदीन,इसको वापस अपनी पुरानी जगह ही लगा दो", अनाया ने रामदीन को आदेश दिया और ब्रश करने वाशरूम में चल दी।
सुधा चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई।
दोपहर में लंच के बाद सब घूमने निकल गए। कार में सुधा चुप चुप सी ,उखड़ी सी बैठी रही।लोकेश जी सब समझ गए थे,आखिर पति थे उनके।
शाम को घर लौटने पर लोकेश जी विकास से बोले," बेटा हमारा कल की वापसी का  रिजर्वेशन करवा दो,अगर मिल रहा हो तो!!मैं तो सिर्फ तीन चार दिन के लिए तुम्हारे पास रहने आया था,आज देखो पूरा एक हफ्ता हो गया।दुकान इतने दिन से बंद है,सारे ग्राहक टूट जायेंगे और मिश्रा की दुकान से सामान लेने लगेंगे।तुम दोनों ने खूब हमारा ख्याल रखा।खूब घुमाया फिराया,अब जाने दो।लौटते पर दो दिन बेटी के पास गुड़गांव रह लेंगे,वह भी कई दिन से बुला रही है।"
" यह क्या पापा,आपने तो कहा था कि इस बार पूरा एक महीना रहेंगे आप मेरे पास।इतनी जल्दी मन ऊब गया? " विकास नाराज़ होते हुए बोला।
" ऐसी बात नहीं बेटा",सुधा बोलीं," हम फिर आ जायेंगे।अभी दिवाली पर दुकान में लक्ष्मी गणेश पूजन भी करना है।फिर वनिता भी बुलाए पड़ी है।दो दिन उसके पास भी रुक लेंगे।"
दोनों के ज़िद करने पर विकास ने दो दिन बाद का उनका वापसी का रिजर्वेशन करवा दिया। अनाया ने भी उनसे काफी ज़िद करी रुकने की,कहा कि अभी तो मुंबई के कई स्थान घूमने के लिए रह गए हैं,पर सुधा ने प्यार से मना कर दिया।
वापसी में दोनों बेटी वनिता के यहां आ गए।
वनिता का पति अतुल डेली नॉन वेज खाने वालों में से था,बहुत ही शौकीन।जबकि लोकेश और सुधा अंडा तक नहीं खाते थे,यहां तक कि अंडे की स्मेल से सुधा जी का जी मिचलाने लगता था।
दोपहर लंच में डाइनिंग टेबल पर बेटी ने खाना लगा दिया।अपने पापा मम्मी के लिए उसने मटर पनीर,रायता,मेथी के साग की सब्ज़ी बनाई थी पर साथ में ही लंच करने बैठे दामाद अतुल जी की प्लेट में रखे चिकन पीस की गंध दोनों बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे अतः अपनी प्लेट लगा कर दोनों बेड रूम में ही आकर खाने लगे।
" क्या करूं पापा,आपको तो पता है कि इनको रोज़ नॉन वेज चाहिए, न मिले तो यह भूखे से रह जाते हैं,वनिता हंसते हुए बोली।
" कोई बात नहीं बेटा,दामाद जी को जिस चीज़ का शौक है,वह उनको मिलनी ही चाहिए," लोकेश जबरन मुस्कुराते हुए बोले।
शाम को अचानक से कानपुर से लोकेश जी के समधी समधिन भी बेटे अतुल के घर आ गए क्योंकि उन्हें गुड़गांव में कोई शादी अटेंड करनी थी।
रात में दूसरे कमरे के डबल बेड पर वनिता के सास ससुर सो गए और वनिता ने ड्राइंग रूम में ही दो फोल्डिंग डाल कर अपने पापा मम्मी का बिस्तर लगा दिया।
लोकेश जी को फोल्डिंग चारपाई पे बिलकुल नींद नहीं आती थी और उनकी पीठ में दर्द हो जाता था। रात भर वह करवटें बदलते रहे।
सुबह सुधा जी और लोकेश जी को चार बजे से ही आंख खुल गई।
" आज ही घर वापस चलें क्या? लोकेश जी ने सुधा से पूछा।
हां,आज ही कैब बुक करवा के या बस से वापस घर चलते हैं।मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है।सारे कमरे,आंगन इतने दिन से बंद पड़े हैं,गंदे हो गए होंगे।तुलसी जी कहीं सूख न गई हों,बिना पानी के।"सुधा जी खुश होते हुए बोलीं।
" हां,शर्मा जी, मिश्रा जी,श्रीवास्तव साहब से भी बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई। उस दिन उनका फोन भी आया था, मिश्रा कह रहा था कि जबसे मैं वहां से गया हूं,चारों की चांडाल चौकड़ी जमी ही नहीं।शाम को चारों इकट्ठा होकर गपशप लड़ाया करते थे," लोकेश जी बोले।
" हां,हमारा घर हमें वापस बुला रहा है,जिसकी मालकिन सिर्फ मैं हूं,सिर्फ मैं!
जहां मैं अपनी मन मर्जी का खा, पका सकती हूं,कहीं भी सो सकती हूं,कुछ भी अपने मन का कर सकती हूं,जहां सिर्फ मेरी मनमर्जियां चलती हैं," सुधा जी मुस्कुराते हुए एक चैन की सांस लेते हुए बोलीं।
दोनों ने उठ कर अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया।

#व्योमवार्ता

रविवार, 23 जुलाई 2023

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....आज की कटु कहानी

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....

आज की कटु कहानी

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी की फोन की घंटी बजने लगी।मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”
निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।
बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।
रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं।
रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”
विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।”
निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।”
विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है। आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?”
निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।
निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।” सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।
बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।”
रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है। मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।”
पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”
अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।”
निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो।
आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं।
अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं। मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है। ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।”
निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।”
तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।
रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती।
वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।”
सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”
निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता, फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’
” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “
#व्योमवार्ता

रविवार, 2 जुलाई 2023

#समाज_जिसमें_हम_रहते_है..../प्रेम का पुनर्जन्म।

#समाज_जिसमें_हम_रहते_है....

प्रेम का पुनर्जन्म।

वृद्धआश्रम के चिकित्सक ने बंशी सिंह को सलाह दिया। आप थोड़ी देर घूमे, टहले। यह सांस कि बीमारी ठीक हो जायेगी। अपनी पत्नी को लेकर बच्चों के पास घूमने भी जा सकते है।
डॉक्टर ने पूछा कितने बच्चे है आपके ?
बंशी बाबू बोले, तीन बेटे है। बड़ा बेटा अभय भेल में मैनेजर है। बहु भी भेल में काम करती है।
 दूसरा बेटा संजय बंगलौर कि एक कम्पनी में काम करता है। उसके दो बच्चे है, लेकिन पत्नी से डिवोर्स चल रहा है। सबसे छोटा बेटा विवेक अमेरिका चला गया।
तीन वर्ष सेवानिवृत्त के बाद बंशी बाबू बड़े लड़के पास आये। फिर उसने वृद्धआश्रम भेज दिया, कभी कभी मिलने आते है। बंसी बाबू गाँव कि जमीन छोटे बेटे को पढ़ाने और अमेरिका भेजने में लगा दिया था।
उधर दूसरे बेटे संजय के ऑफिस में आकर उसकी पत्नी ने हंगामा कर दिया, पत्नी चाहती थी बंगलोर वाला फ्लैट उस मिले। जो संजय ने अपने नाम 50 लाख में खरीदा था। बॉस ने संजय को बुलाकर कहा इससे कम्पनी कि रिपोटेंशन खराब हो रही है।
मानसिक पीड़ा , अवसाद से पीड़ित संजय आत्महत्या करते। उसके पहले उन्हें एक ट्रेन दिखी जो दिल्ली जा रही थी। वह दिल्ली चले आये। वहां से प्रयागराज , फिर अपने गाँव बसवाड़ा आ गये।
गांव का वह घर अब भी ठीक स्थिति में था। बंसी के बड़े बेटे एक दुबई रहने वाले इस्माईल को बेचने के लिये बात चला रखी थी। वही उसको सुरक्षित रखे थे।
संजय बाबू, घर का दरवाजा खोल तो चारो तरफ अंधेरा था। एक बिजली का बल्ब था। उसको जलाये तो जल गया। वह आंगन, वह ओसारा देखकर रोने लगे। उनका बचपन वही बीता था।
कभी बंसी सिंह की बड़ी प्रतिष्ठा थी। वह सामाजिक व्यक्ति थे।बहुत सारे लोग उधार पैसे लेते थे। जो कभी दिया नहीं। लेकिन आज झाड़ियों के बीच घर है।
संजय बाबू आज 20 वर्ष बाद अपने घर आये थे। उनके साथ इंजीनियरिंग करने वाली लड़की प्रेम विवाह किया तो वापस न आये।
वह एक टूटी कुर्सी पर बैठकर। यह सोचने लगे कि क्या प्रेम, विवाह ने इतना मुझे विवश किया या यह मेरी दुर्बलता थी। जो मैंने मित्र, पैतृक घर, माता पिता सब कुछ छोड़ दिया। मैं प्रेम को अपने लिये उपयोग किया। 
अब मेरे पास खोने को कुछ नहीं है। ऐसे लगता है कि मैं मर चुका हूँ। जिस प्रेम के लिये मैं संसार छोड़ दिया। वह प्रेम पत्नी बनकर सारा संसार चाहती है।
उनका अवसाद और भी गहरा होता। तभी उनके सहपाठी रहे उदय आ गये। जिनकी मार्कट में एक दूकान है।
वह बोले क्या भाई 14 वर्ष में तो भगवान राम भी वापस आ गये थे। संजय उनको गले लगाये, बोले हाँ, मेरे जैसे सुविधाभोगी लोग कैसे शहर छोड़ सकते है।
 उदय बोला, भाभी नही आई। क्या घर बेचकर आज ही चलो जाओगे क्या?
संजय बोले नहीं, अभी रहेंगें।
उदय बोले ठीक है, जब तक हो भोजन मेरे घर ही करना।
उदय के जाने के बाद, संजय बाबू दो दिन तक घर से नहीं निकले। एक दिन वह इस्माइल आया तो देखकर दंग रह गया।
पूरा घर व्यवस्थित, साफ सुथरा हो गया था। सामने कि झाड़ियां काट दी गई थी। बिजली कि व्यवस्था हो गई थी।
बंसी सिंह का कमरा महक रहा था। वहां फिर से भगवान की मूर्तियां रख दी गई थी। रामचरित मानस, गीता पर धूप बत्ती जल रो थी।
इस्माइल बोला मैं तो ऐसे ही ठीक ठाक पैसा देता था। आधा तो आपके बड़े भाई अभय को दे भी चुका हूँ। आप नाहक परेशान हुये।
संजय बाबू,  बोले अब जाओ, जब बुलाये तभी आना। यह सोचकर आना कि यह घर मेरा है। यहां तुम्हारे जैसों के लिये स्थान नहीं है।
तभी उदय, मिनी टाटा से गैस सिलेंडर, बर्तन, अनाज आदि सभी सामान लेकर आये।
संजय पूछे कार्ड में पैसे थे या नहीं।
उदय बोले अरे अभी बहुत टेंशन ना लो। उन्होंने सलाह दिया कभी आपका नाऊ रहे कि पत्नी महराजिन को काम पर रख लो। बहुत मेहनती है।
महराजिन आ गई, सब कुछ व्यवस्थित हो गया। ऐसे 15 दिन बीत गये।
पहली बार संजय बाबू आज घर का भोजन किये। तो रोने लगें। उन्होंने महराजिन को घर देकर बोले मैं दो दिन में आता हूँ।
संजय बाबू सीधे वृद्धआश्रम पहुँचे। उनकी माँ देकर भावुक हो गई। बोली तुम्हारी क्या दशा हो गई है। पत्नी जो कहती है, मान जाओ। दांपत्य जीवन गाड़ी कि तरह होता है। जो दो चक्कों से चलता है।
संजय बाबू, सारी कागजी कार्यवाही पहले कर चुके थे। वह बोले ठीक है, आप मेरे साथ चलो।
बंसी बाबू बोले कहा चले ?
संजय ने कहा , आप चलिये तो पहले।
दिनभर कि यात्रा के बाद गाड़ी बनकी गांव, बंसी सिंह के द्वार पर पहुँची।
 तीन साल बाद अपना घर देखकर बंसी बाबू घुटनो के बल बैठ गये। संजय बाबू कि माँ, महराजिन को गले लगा लिया।
बंसी बाबू के द्वार पर दो दिन लोग आते जाते रहे।
संजय ने एक दिन कहा आपको सांस वाले डॉक्टर को दिखा देते है।
बंसी बाबू बोले मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है। देखो सुबह पूरा गांव घूमकर आ रहा हूँ। अब थोड़ी देर भजन करूँगा।
आज संजय बाबू, बंगलोर अपनी पत्नी के पास फोन किये। उधर से पत्नी बोली भागने से काम नहीं चलेगा। मुझे फ्लैट चाहिये।
संजय बाबू बोले बच्चे कैसे है ?
पत्नी बोली, तुम से क्या मतलब बच्चों से, पहले भी नहीं था।
संजय बाबू बोले मैंने फ्लैट कि चाभी भेज दिया। अब वह फ्लैट तुम्हारा है। जब वहां आयेंगें तुम्हारे नाम कर देंगें। पाँच लाख रुपये मैंने तुम्हारे एकाउंट में बच्चों के लिये ट्रांसफर कर दिया है। अब बंगलौर में जॉब छोड़ दिया है। अपने वकील से कहना, सभी शर्त मुझे मंजूर है।
संजय एक स्कूल में 15 हजार पर पढ़ाने लगे। वह और उदय के फार्मा कंपनी खोले है। जो लोगों को बनारस से लाकर सस्ती दवा उपलब्ध कराती है।
अभी एक वर्ष ही बीते है। संजय ने अपनी आधी जमीनें वापस ले ली है। उनको क्षेत्र के लोग बहुत सम्मान करते है। वह सबके सुख दुख में सम्मलित होते है।
सुबह संजय बाबू अपने माता पिता के साथ चाय पी रहे थे। उनकी माँ ने कहा, बेटा जब भी मैं मंदिर जाती हूँ। भगवान से प्राथना करती हूँ, सबको तुम्हारे जैसा बेटा दे।
संजय बोले, माँ मैं वह नहीं हूँ। जो पहले था। परिस्थितियों ने मुझे फिर से जन्म दिया है। अब इस जन्म दो मैं गवाना नहीं चाहता।
तभी उनके पिता बंशी बाबू बोले। बंगलोर से बहु का फोन आया था। उसे बहुत आत्मग्लानी है। वह आना चाहती है।
तुम कहो तो बुला लेते है।
संजय बोले, मैं अब ना बुला सकता हूँ । न ही रोक सकता हूँ। वह चाहे तो आयें , मुझे किसी के आने जाने से कोई अंतर नहीं पड़ता है।
#व्योमवार्ता
साभार Dr. Ravishankar Singh

गुरुवार, 8 जून 2023

व्योमवार्ता / समाज जिसमें हम रहते हैं

#समाज जिसमे हम रहते हैं....
समझदार माता पिता के सफल बच्चे!!!!!!

कुछ माता-पिता बड़े समझदार होते हैं !
वे अपने बच्चों को किसी की भी मंगनी, विवाह, लगन, शवयात्रा, उठावना, तेरहवीं (पगड़ी) जैसे अवसरों पर नहीं भेजते,
 इसलिए की उनकी पढ़ाई में बाधा न हो!
उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के यहां आते-जाते नहीं, न ही किसी का घर आना-जाना पसंद करते हैं।
वे हर उस काम से उन्हें से बचाते हैं . .
 जहां उनका समय नष्ट होता हो !" 
उनके माता-पिता उनके करियर और व्यक्तित्व निर्माण को लेकर बहुत सजग रहते हैं !
 वे बच्चे सख्त पाबंदी मे जीते हैं!दिन भर पढ़ाई करते हैं,
 महंगी कोचिंग जाते हैं, अनहेल्दी फूड नहीं खाते,
 नींद तोड़कर सुबह जल्दी साइकिलिंग या स्विमिंग को जाते हैं, महंगी कारें, गैजेट्स और क्लोदिंग सीख जाते हैं, क्योंकि देर-सवेर उन्हें अमीरों की लाइफ स्टाइल जीना है !
फिर वे बच्चे औसत प्रतिभा के हों या होशियार, उनका अच्छा करियर बन ही जाता है, क्योंकि स्कूल से निकलते ही उन्हें बड़े शहरों के महंगे कॉलेजों में भेज दिया जाता है,जहां जैसे-तैसे उनकी पढ़ाई भी हो जाती है और प्लेसमेंट भी।
 अब वह बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और छोटे शहरों को हिकारत से देखते हैं !
 मजदूरों, रिक्शा वालों, खोमचे वालों की गंध से बचते हैं ...
ये बच्चे छोटे शहरों के गली-कूचे, धूल, गंध देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं।रिश्तेदारों कीआवाजाही उन्हें बेकार की दखल लगती है। फिर वे अपना शहर छोड़कर किसी मेट्रो सिटी या फिर  विदेश चले जाते हैं ..
वे बहुत खुदगर्ज और संकीर्ण जीवन जीने लगते हैं। 
अब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना भी उन्हें बोझ लगने लगता है !
 पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक संपत्ति को बचाए रखना उन्हें मूर्खता लगने लगती है !
वे पैतृक संपत्ति को जल्दी ही उसे बेचकर 
'""राइट इन्वेस्टमेंट""' करना चाहते हैं !
 माता-पिता से ..
 "वीडियो चैट" में उनकी बातचीत का मसला अक्सर यही रहता है .
इधर दूसरी तरफ कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो सबके सुख-दुख में जाते हैं,
जो किराने की दुकान पर भी जाते हैं, बुआ, चाचा, दादा-दादी को अस्पताल भी ले जाते हैं, 
तीज-त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बंटाते हैं, 
क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें यह मैनर्स सिखाया है !
 कि सब के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए और ..
 किसी की तीमारदारी, सेवा और रोजमर्रा के कामों से जी नहीं चुराना चाहिए .
इन बच्चों के माता-पिता.... उन बच्चों के माता-पिता की तरह समझदार नहीं होते..
 क्योंकि वे इन बच्चों का
"कीमती समय" अनावश्यक कामों में नष्ट करवा देते हैं !
फिर ये बच्चे छोटे शहर में ही रहे जाते हैं और दोस्ती यारी रिश्ते नाते  जिंदगी भर निभाते हैं !
यह बच्चे, उन बच्चों की तरह "बड़ा करियर" 
नहीं बना पाते, इसलिए उन्हें असफल और कम होशियार मान लिया जाता है !
समय गुजरता जाता है, फिर कभी कभार, 
वे 'सफल बच्चे' अपनी बड़ी गाड़ियों या फ्लाइट से छोटे शहर आते हैं, 
दिन भर एसी में रहते हैं, पुराने घर और गृहस्थी में सौ दोष देखते हैं।
फिर रात को, इन बाइक, स्कूटर से शहर की धूल-धूप में घूमने वाले
 'असफल बच्चों' को ज्ञान देते हैं कि.... तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली आदि आदि !!
असफल बच्चे लज्जित व हीनभाव से सब सुन लेते हैं !
 फिर वे 'सफल बच्चे' वापस जाते समय इन असफल बच्चों को,
 पुराने मकान में रह रहे उनके मां-बाप, नानी, दादा-दादी का ध्यान रखने की हिदायतें देकर, 
वापस बड़े शहरों या विदेशों को लौट जाते हैं।
फिर उन बड़े शहरों में रहने वाले बच्चों की, इन छोटे शहर में रह रहे मां, पिता, नानी के घर कोई सीपेज   रिपेयरिंग का काम होता है तो यही 'असफल बच्चे' बुलाए जाते हैं।
 सफल बच्चों के उन वृद्ध मां-बाप के हर छोटे बड़े काम के लिए .. यह 'असफल बच्चे' दौड़े चले आते हैं। 
कभी पेंशन, कभी किराना, कभी घर की मरम्मत, कभी पूजा...डॉ . के यहां लाना ले जाना  कभी कुछ कभी कुछ !
जब वे 'सफल बच्चे' मेट्रोज के किसी एयरकंडीशंड जिम में ट्रेडमिल कर रहे होते हैं....!
तब छोटे शहर के यह 'असफल बच्चे' उनके बूढ़े पिता का चश्मे का फ्रेम बनवाने,किसी दूकान के काउंटर पर खड़े होते हैं...
 और तो और इनके माता पिता के मरने पर अग्नि देकर तेरहवीं तक सारे क्रियाकर्म भी करते हैं !
सफल यह भी हो सकते थे....! 
इनकी प्रतिभा और परिश्रम में कोई कमी न थी....!
 ""मगर... 
इन बच्चों और उनके माता-पिता में शायद 'जीवन दृष्टि अधिक' थी !"
कि उन्होंने धन-दौलत से अधिक, "मानवीय संबंधों और सामाजिक मेल-मिलाप को आवश्यक" माना .
सफल बच्चों से किसी को कोई अड़चन नहीं है.. 
मगर बड़े शहरों में रहने वाले, वे 'सफल बच्चे' अगर 'सोना' हैं, तो छोटे शहरों-गांवों में रहने वाले यह 'असफल बच्चे' किसी 'हीरे' से कम नहीं !
आपके  हर छोटे-बड़े काम के लिए दौड़े आने वाले ,
 उनका कैरियर सजग बच्चों से कहीं अधिक तवज्जो और सम्मान के हकदार है !
अपने बच्चों को "संवेदनशील" बनाईए...
वे "धन कमाने की मशीन" नहीं हैं !
 सही  सकारात्मक एवं मानवीय दृष्टिकोण ही सही जीवन है !!
#व्योमवार्ता
🙏🙏🙏

#व्योमवार्ता; /#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं ; /#विश्व_पर्यावरण_दिवस पर

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं 
#विश्व_पर्यावरण_दिवस पर

मैनें पेड़ से फोन कर के पूछा कैसे हो, कहाँ रहते हो, आजकल दिखाई नहीं देते ?
पेड़ बोला मात्र चालिस साल पहले तक हम बहुत सारे नीम, पीपल, बड़, कीकर, शीशम, जांडी, आम, जामुन, कंदू, शहतूत व लेसुवे आदि आपके आसपास ही रहते थे।
याद करो तब तक आपके घरों में फर्नीचर के नाम पर खाट, पीढे व मूढ़े ही होते थे। खाट व पीढे के सिर्फ पावे हमारी लकड़ी से बनते थे। सेरू व बाही बाँस की ही होती थी, मूढ़े सरकंडे से बने होते थे।
फिर आप लोगों को पता नहीं क्या हुआ आपने हमें अखाड़ बाडे काटना शुरू कर दिया। हमारी लकड़ी से डबल बैड, सोफे, मेज, अलमारी व कुर्सी आदि बना कर अपने घरों में भर ली। आप स्कूलों में टाट बिछाकर पढ़ा करते थे फिर हमें काट कर बैंच बना डाले। नजर घुमाओ और देखो कोई तीस चालिस साल पुराणा पेड़ आसपास है के !!!
हम पेड़ आजकल आपके घर, दफ्तर व स्कूल कालेजों में ही हैं।
मैनें फिर पेड़ से पूछा कि आज तो विश्व पर्यावरण दिवस है चलो एक पेड़ मैं लगा देता हूँ।
पेड़ भड़क गया और कहा कि जन्मजात मुर्ख हो या पढ़ लिख कर हो गये, लगता है हमारी लाश से बने सोफे या डबल बैड पर बैठकर, ऐ•सी• चलाकर, सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर फोन कर रहे हो। बाहर निकल कर देखो इस 48℃ के तापमान में हमारी वृद्धि कैसे होगी। 
अरे !! वो पश्चिमी जगत वाले अपने मौसम व मान्यताओं के हिसाब से दिन निर्धारित करते हैं और तुम अक्ल से अंधे भारतीय आँख मिंच कर उन्हें मानने लगते हो।😡😡
पेड़ एक नहीं अनेक लगाना पर मानसून आने पर। जेठ के महीने में पेड़ लगायेगा खाद-पानी तेरा बाप देगा। अषाढ़ से फागुन तक जितने मर्जी लगा लेना😠😠
फिर पेड़ गाना गाने लगा "तेरी दुनिया से दूर, चले हो के मजबूर, हमें याद रखना"
इतना कह कर पेड़ ने फोन रख दिया।
साभार

#व्योमवार्ता; /आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ??

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं
गहराई से सोचो !
आपकी ज़िंदगी का कोच कौन है ?? 

अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं जो वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई , वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई , 
जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने जब देखा कि अनीता एक नियत समय से ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है , 
एंड्रिया पल भर के लिए सब कुछ भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता चल रही है , एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया चलती प्रतियोगिता के बीच में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी , 
वहाँ मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी , 
एंड्रिया ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में पानी के अंदर बेहोश पड़ी है , 
ऐसी हालत में ना हाथ पैर चला सकती ना मदद माँग सकती , 
एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला मौजूद हज़ारों लोग सन्न रह गए , एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया , 
लेकिन हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा सवाल छोड़ गई ! 

इस दुनियाँ में ना जाने कितने लोग हम सबकी ज़िंदगी से जुड़े हैं कितनों से रोज़ मिलते भी होंगे , 
जो इंसान हर किसी से अपने मन की बात नहीं कह पाता कि असल ज़िंदगी में वह भी कहीं डूब रहा है , वह भी किसी तकलीफ़ से गुज़र रहा है , वह भी किसी बात को लेक़र ज़िंदगी से परेशान हो रहा है , लेकिन बता नहीं पा रहा है
जब इंसान किसी को अपने मन की व्यथा , अपनी परेशानी नहीं बता पाता तो मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता है कि वह ख़ुद को पूरी दुनियाँ से अलग़ कर लेता है ,  सबकी नज़रों से दूर एकांत में ख़ुद को चारदीवारी में क़ैद कर लेता है , 
ये वक़्त ऐसा होता है कि तब इंसान डूब रहा होता है , उसका मोह ख़त्म हो चुका होता है , ना किसी से बात चीत  ना किसी से मिलना जुलना , 
ये स्थिति इंसान के लिए सबसे ख़तरनाक होती है , 
जब इंसान अपने डूबने के दौर से गुज़र रहा होता है , तब बाक़ी सब दर्शकों की  भाँति अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होते हैं किसी को ख़्याल ना होता कि एक इंसान किसी बड़ी परेशानी में है , 
अगर इंसान  कुछ दिन के लिए ग़ायब हो जाए  तो पहले तो लोगों को ख़्याल नहीं आएगा , अगर कुछ को आ भी जाए तो लोग यही सोचेंगे , पहले कितनी बात होती थी अब वो बदल गया है या फिर उसे घमंड हो गया है या अब तो बड़ा आदमी बन गया है इसलिए बात नहीं करता , जब वो बात नहीं करता तो हम कियूँ करें ! 
या फिर ये सोच लेते हैं कि अब दिखाई ना देता तो वो अपनी ज़िंदगी में मस्त है इसलिए नहीं दिखाई देता , 
#अनीता_अल्वारेज पेशेवर तैराक होते हुए डूब सकती है तो कोई भी अपनी ज़िंदगी में बुरे दौर से गुज़र सकता है , ये समझना ज़रूरी है 
लेकिन उन लोगों से हट कर कोई एक इंसान ऐसा भी होगा जो आपकी मनोस्थिति तुरंत भाँप लेगा , उसे बिना कुछ बताये सब पता चल जाएगा , आपकी ज़िंदगी के हर पहलू पर हमेशा नज़र रखेगा , थोड़ा सा भी परेशान हुए वो आपकी परेशानी आकर पूछने लगेगा , 
आपके बेहवियर को पहचान लेगा , आपको हौसला देगा आपको सकारात्मक बनायेगा और #एंड्रिया की तरह कोच बन कर आपकी ज़िंदगी को बचा लेगा , 
हम सबको ऐसे कोच की ज़रूरत पड़ती है…
ऐसा  कोच कोई भी हो सकता है , आपका भाई , बहन , माँ , पापा ,
आपका कोई दोस्त , आपका कोई हितैषी , आपका कोई रिश्तेदार , कोई भी , जो बिना बताये आपके भावों को पढ़ ले और तुरंत एक्शन ले। #गहराई_से_सोचो_आपकी_ज़िंदगी_का_कोच_कौन_है ?? 

साभार
ll सर्वे भवंतु सुखिन:
Copied

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

#व्योमवार्ता #काशी इतिहास से भी प्राचीन

अपने बनारस के इतिहास को जानिये

अतीत काल से ही इस पुरातन नगरी काशी, वाराणसी अथवा बनारस का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसके बारे में अनेक लोगों द्वारा  समय-समय पर कहा जाता रहा है। आज बनारस अपने पुरातन स्वरूप से अधुनातन स्वरूप की ओर तेजी से परिवर्तित हो रहा है। ऐसी स्थिति में इस शहर के प्रति अनेक भ्रान्तियों ने भी जन्म लेना शुरू कर दिया है। अचानक आई प्राकृतिक आपदा करोना से भी इस शहर की परिस्थितियां बदलीं हैं, या बदल रहीं हैं, जिससे आज की नवीन पीढ़ी इस शहर को मात्र एक मौज-मस्ती के शहर के रूप ही जान रही है, जिससे इसके वास्तविक इतिहास का महत्व गौण होता जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि इस शहर के अतीत के कतिपय महत्वपूर्ण बिन्दुओं के माध्यम से नयी पीढ़ियों को सही जानकारी दी जाय।प्राप्त स्त्रोतों द्वारा उन्हें क्रमवार अवगत कराने का यह एक लघु प्रयास ही है।
मार्क ट्वेन ने लिखा है कि “वाराणसी इतिहास से भी प्राचीन है, परम्परा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है और मिथकों से कहीं अधिक प्राचीन है और यदि तीनों (इतिहास, परम्परा और मिथक) को एक साथ रखा जाए तो यह उससे दोगुनी प्राचीन है।” प्रस्तुत है अतीत के आईने में झाँकते हुए काशी से जुड़ी प्रमुख तिथियों एवं घटनाओं का विवरण-

द्वापर युग में काशी के राजा शौन हौत्र थे जिनके तीसरी पीढी में जन्मे दिवोदास भी काशी के राजा हुये।

9वीं सदी, ई0पू0 – शंकराचार्य की काशी-यात्रा और ‘शंकरदिग्विजय’ तथा ‘ब्रह्मसू-भाष्य’ की रचना।

816 ई0पू0 – आदि जगदगुरू शंकराचार्य का काशी में आगमन हुआ।

800 ई0पू0 – राजघाट (वाराणसी) में प्राचीनतम बस्ती और मिट्टी के तटबंध के पुरावशेष

8वीं सदी ई0पू0 – तेईसवें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का काशी में जन्म।

7वीं सदी ई0पू0 – काशी-एक स्वतंत्र महाजनपद।

625 ई0पू0 – काशी सारनाथ में सर्वप्रथम भगवान बुद्ध ने बौद्धधर्म का उपदेश दिया था।

405 ई0पू0 – चीनी यात्री फाह्यान का काशी में आगमन हुआ।

340 ई0पू0 – सम्राट अशोक की वाराणसी-यात्रा। सारनाथ में अशोक-स्तंभ और धम्मेख तथा धर्मराजिक स्तूपों की स्थापना।

1 ई0 से 300 ई0 – राजघाट के पुरावशेषों के आधार पर वाराणसी के इतिहास में समृद्धि का काल।

सन् 302 – मणिकर्णिका घाट का निर्माण हुआ था

सन् 580 – पचगंगा घाट का निर्माण हुआ।

12वीं सदी – काशी पर गहड़वालों का शासन। गहड़वाल नरेश गोविन्दचंद्र के राजपंडित दामोदर द्वारा तत्कालीन लोकभाषा (कोसली) में उक्तिव्यक्ति प्रकरण की रचना। गोविंदचंद्र की रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में विहार बनवाया। गहडवाल युग में काशी के प्रधान देवता अविमुक्तेश्वर शिव की विश्वेश्वर में तब्दीली।

सन् 1193 – काशीराज जयचंद की मृत्यु।

सन् 1194 – कुतुबुद्दीन का काशी पर आक्रमण हुआ, जिसने विष्णु-मंदिर को तोड़कर ढाई कंगूरे की मस्जिद बनवा दी।

सन् 1194 व 1197 – काशी पर शहाबुद्दीन और कुतुबुद्दीन ऐबक के हमले। काशी की भारीलूट। गहडवालों का अंत।

सन् 1248 – दूसरी बार मुहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ।

सन् 1393 – माघ शुक्ल पूर्णिमा को काशी में रविदास का जन्म हुआ।

सन् 1516 – फरवरी माह में चैतन्य महाप्रभु का काशी में आगमन हुआ, जहाँ पर ठहरे थे वह स्थान चैतन्य वट के नाम से प्रसिद्ध है।

सन् 1526 – बाबर ने इब्राहीम लोदी को पराजित करने के बाद काशी पर भी आक्रमण किया।

सन् 1531 – बनारस व सारनाथ में हुमायूं का डेरा।

सन् 1538 – बनारस पर शेरशाह की चढ़ाई।

सन् 1553 – सिख सम्प्रदाय के प्रथम गुरु श्री गुरूनानक देव जी का काशी आगमन हुआ और काशी में कई वर्ष़ों तक ठहरे थे। यह स्थान आज गुरुबाग के नाम से प्रसिद्ध है।

सन् 1565 – काशी पर बादशाह अकबर का कब्जा।

सन् 1583-91 – प्रथम अंग्रेज यात्री रॉल्फ फिच की वाराणसी-यात्रा।

सन् 1584 – काशी में ज्ञानवापी स्थित प्राचीन विश्वेश्वर मन्दिर का निर्माण दिल्ली सम्राट अकबर के दरबारी राजा टोडरमल के द्वारा हुआ।

सन् 1585 – राजा टोडरमल और नारायण भट्ट की मदद से विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण।

सन् 1600 – राजा मान सिंह द्वारा काशी में मानमंदिर और घाट का निर्माण।

सन् 1623 – सोमवंशी राजा वासुदेव के मंत्री नरेणु रावत के पुत्र श्री नारायण दास के दान से काशी में मणिकर्णिका घाट स्थित चक्रपुष्करणी तीर्थ का निर्माण हुआ।

सन् 1642 – विंदुमाधव मन्दिर ( प्रथम ) का निर्माण जयपुर के राजा जयसिंह द्वारा हुआ।

सन् 1656 – दारा शिकोह की बनारस यात्रा।

सन् 1666 – औरंगजेब की आगरा-कैद से भागकर छत्रपति शिवाजी कुछ दिन काशी में ठहरे।

सन् 1669 – औरंगजेब के आदेश से विश्वनाथ मंदिर गिरा कर उसके स्थान पर ज्ञानवापी की मस्ज़िद उठा दी गई। बिंदुमाधव का मन्दिर भी गिराकर वहां मस्जिद बनाई गई।

सन् 1669 – औरंगजेब के समय में उसकी आज्ञा से ज्ञानवापी का विश्वेश्वर मन्दिर तोड़ा गया।

सन् 1669 – छत्रपति शिवाजी आगरे के किले से औरंगजेब को चकमा देकर कैद से निकल कर सीधे काशी आये। यहाँ आकर पंचगंगा घाट पर स्नान किया।

सन् 1673 – काशी में औरंगजेब द्वारा बेनी माधव का मन्दिर तोड़ा गया।

सन् 1699 – आमेर के महाराज सवाई जयसिंह ने काशी में पंचगंगा घाट पर राम मन्दिर बनवाया था।

सन् 1714 – गंगापुर ग्राम में कार्त्तिक कृष्ण पक्ष में काशीराज महाराज बलवन्त सिंह का जन्म हुआ।

सन् 1725 – काशी राज्य की स्थापना।

सन् 1734 – नारायण दीक्षित पाटणकर का वाराणसी आगमन; उन्होंने यहां कई घाट बनवाए।

सन् 1737 – महाराजा जयसिंह नें मानमन्दिर वेधशाला का निर्माण कराया।

सन् 1740 – बलवन्त सिंह के पिता श्री मनसाराम का देहावसान हो गया।

सन् 1741-42 –  गंगापुर में तत्कालीन काशीराज द्वारा दुर्ग का निर्माण कराया गया।

सन् 1737 – सवाई जयसिंह द्वारा मानमंदिर- वेधशाला की स्थापना।

सन् 1747 – राजा बलवन्त सिंह ने चन्देलवंशी राजा को पराजित कर विजयगढ़ पर अधिकार किया।

सन् 1752 – काशीराज बलवंत सिंह द्वारा रामनगर किले का निर्माण।

सन् 1754 – महाराज बलवन्त सिंह ने पलिता दुर्ग पर विजय पाया।

सन् 1755 – बंगाल, नागौर राज्य की रानी भवानी के द्वारा पंचक्रोशी स्थित कर्दमेश्वर महादेव के सरोवर का निर्माण हुआ।

सन् 1756 – रानी भवानी ने भीमचण्डी के सरोवर का निर्माण करवाया।

सन् 1770  – 21 अगस्त को महाराज बलवन्त सिंह का स्वर्गवास हुआ।

सन् 1770 -81 – काशी पर महाराज चेतसिंह का शासन था।

सन् 1777  – महारानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर का नवनिर्माण कराया।

सन् 1781 – 16 अगस्त को काशी में शिवाला घाट पर अंग्रेजी सेना से राजा चेतसिंह के सिपाहियों का संघर्ष हुआ। यह विद्रोह राजभक्त नागरिकों द्वारा मारे गये।

सन् 1781 – अगस्त में काशी की देश भक्त जनता की क्रांति से भयभीत होकर वारनेहेस्टिंग्स जनाने वेश में नौका द्वारा चुनार भाग गया।

सन् 1781-94 –  काशी राज्य पर महाराज महीप नारायण का राज्य था।

सन् 1785 – काशी में महारानी अहिल्या बाई द्वारा विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण हुआ।

सन् 1787-95 – जोनाथन डंकन बनारस के रेजिडेंट।

सन  1787 –  काशी में प्रथम बार भूमि का बन्दोबस्त मिस्टर डंकन साहब के द्वारा हुआ जो डंकन बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है।

सन् 1791 –  वाराणसी में संस्कृत पाठशाला (अब संस्कृत विश्वविद्यालय) का प्रस्ताव जोनाथन डंकन ने रखा था।

सन् 1794 – काशी राजकीय संस्कृत विद्यालय (क्वींस कालेज) की स्थापना।

सन् 1802 – बनारस की पहली पक्की एवं मुख्य सड़क दालमण्डी, राजादरवाजा, काशीपुरा, औसानगंज होते हुये जी.टी. रोड तक बनाई गई।

सन् 1814 – बनारस में लार्ड हेस्टिंग्स का आगमन और दरबार।

सन् 1816 – पश्चिम बंगाल के राजा जयनारायण द्वारा रेवड़ी तालाब मुहल्ले में अंग्रेजी भाषा के प्रथम विद्यालय ’जयनारायण हाईस्कूल’ (वर्तमान में यह इण्टर कालेज) की स्थापना।

सन् 1818 –  काशी के अस्सी मुहल्ले में रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।

सन् 1820 – वर्तमान न्यायालय भवन (कलेक्ट्री कचहरी) का निर्माण हुआ।

सन् 1822 – जेम्स प्रिंसेप ने बनारस का सर्वेक्षण किया।

सन् 1825 – बाजीराव पेशवा द्वितीय ने कालभैरव मन्दिर का निर्माण कराया।

सन् 1827 – फारसी शायर मिर्जा गालिब का काशी में आगमन, जो वर्तमान घुघरानी गली में ठहरे थे।

सन् 1828 – ज्ञानवापी के खंडित सरोवर की रक्षा हेतु ग्वालियर रानी बैजबाई ने एक कूप बनवाया।

सन् 1828-29 – जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनारस की जनगणना; कुल आबादी-1,80,000

सन् 1830 – विश्वेश्वरगंज स्थित गल्ला मण्डी (अनाज की सट्टी) का निर्माण हुआ।

सन् 1835 – काशीराज महाराज ईश्वरी नारायणसिंह राज्य पर बैठे तथा 1889 में उनका स्वर्गवास।

सन् 1839 – पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा काशी विश्वनाथ मन्दिर के कलश पर स्वर्ण-पत्र-चढ़ाया गया।

सन् 1845 – बनारस का पहला सप्ताहिक समाचार पत्र ’बनारस’ प्रकाशित हुआ।

सन् 1853 – वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन का निर्माण पूरा हुआ।

सन् 1866 – काशी म्यूनिसिपल बोर्ड (नगर पालिका) की स्थापना हुई।

सन् 1867 – काशी में प्रथम बार चुंगी (कर) लगी।

सन् 1869 –  22 अक्टूबर को काशी में स्वामी दयानन्द सरस्वती का आगमन हुआ। दुर्गा कुण्ड पर राजा माधव सिंह बाग में विद्वानों से शास्त्रार्थ हुआ।

सन् 1872 – कमिश्नर सी.पी. कारमाइकल के नाम पर ज्ञानवापी में लाइब्रेरी की स्थापना।

सन् 1875 – कुँवर विजयनगरम् श्री गजपति सिंह के द्वारा टाउनहाल का निर्माण हुआ। जिसका उद्घाटन सन् 1876 में प्रिस ऑफ वेल्स के द्वारा हुआ।

सन् 1880-87 – राजघाट पुल (डर्फिन ब्रिज) का निर्माण हुआ।

सन् 1882 – नागरी प्रचारिणी सभा पुस्तकालय एवं बंग साहित्य पुस्तकालय की स्थापना।

सन् 1882 – काशी में गंगा की अधिक बाढ़ हुई थी। कोदई-चौकी तक नावें चली थीं।

सन् 1885 – काशी में कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई। इसकी प्रथम बैठक रामकली चौधरी के बाग में हुई थी। जिसके सदस्य डॉ0 छन्नू लाल, बसीउद्दीन मुख्तार, मु0 माधोलाल, उपेन्द्रनाथ, वृन्दावन वकील थे।

सन् 1887 – राजघाट स्थित गंगा पर रेल-सड़क पुल का उद्घाटन।

सन् 1888 – काशी यात्रा के लिये स्वामी विवेकानन्द का आगमन हुआ।

सन् 1889-31 – काशी राज्य पर महाराज प्रभुनारायण सिंह का राज्य था।

सन् 1890 – भेलुपुर स्थित जल संस्थान का महारानी विक्टोरिया के पौत्र प्रिंस एलबर्ट विक्टर द्वारा शिलान्यास।

सन् 1891 – सारनाथ में अनागारिक धर्मपाल द्वारा महाबोधि संस्था स्थापित हुई।

सन् 1892 – 14 नवम्बर को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर द्वारा भेलुपुर जल संस्थान का उद्घाटन।

सन् 1893 – ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना।

सन् 1897 – पादरी जानसन के द्वारा काशी में गिरजाघरों का निर्माण हुआ। प्रथम-सिगरा, दूसरा-गोदौलिया का।

सन् 1898 – आर्यभाषा पुस्तकालय की स्थापना।

सन् 1904 – तत्कालीन काशी नरेश की अध्यक्षता में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापना के लिये पहली बैठक हुई।

सन् 1910 – काशी में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई।

सन् 1910 – सारनाथ संग्रहालय का निर्माण कराया गया।

सन् 1916 – पं0 मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना।

सन् 1918 – काशी में प्रथम सिनेमा घर का निर्माण बैजनाथ दास शाहपुरी द्वारा बांसफाटक पर मदन थियेटर के नाम से हुआ।

सन् 1920 – काशी विद्यापीठ की स्थापना।

सन् 1920 – महात्मा गांधी काशी में आये और तीन दिनों तक ठहरे।

सन् 1920 - भारत कला भवन, संग्रहालय की स्थापना, बाद में सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का अंग बना।

सन् 1921 – 10 फरवरी को गांधी जी का पुनः काशी आगमन हुआ। तीसरी बार 1921 में उन्होंने विद्यापीठ का शिलान्यास किया।

सन् 1925 – 26 दिसम्बर को काकोरी षडयन्त्र के सम्बन्ध में वाराणसी में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसमें काशी के राजेन्द्र लाहिड़ी को फाँसी दी गयी।

सन् 1928 – वाराणसी मे बिजलीकरण।

सन् 1931 – जून मे प्रथम बार नेता जी सुभाषचन्द्र बोस का आगमन हुआ। दशाश्वमेध स्थित चितरंजन दास पार्क में अभिमन्यु दल द्वारा मानपत्र दिया गया। टाउनहाल के मैदान में नव जवान भारत सभा की ओर से एक सभा हुई।

सन् 1933-34 – रिक्शे की सवारी की शुरुआत ‘दी रेस्टोंरेंट’ के मालिक बद्री बाबू नें की।

सन् 1934 – 13 जनवरी को काशी में भूकम्प आया।

सन् 1934 – 28 दिसम्बर को राजा बलदेव दास बिड़ला के दान से सारनाथ में एक धर्मशाला का निर्माण हुआ।

सन् 1937 – ‘भारतमाता मन्दिर’ का महात्मा गांधी द्वारा उद्घाटन।

सन् 1939 – काशी राज्य में प्रजा की माँग पर काशी नरेश श्री महाराज आदित्य नारायण सिंह ने प्रजा परिषद की घोषणा की।

सन् 1940 – राजघाट (वाराणसी) के उत्खनन की शुरूआत।

सन् 1948 – 15 अक्टूबर को बनारस राज्य का भारतीय संघ में विलय हुआ।

सन् 1956 – बुद्ध-पूर्णिमा के दिन ‘बनारस’ को अधिकृत रूप से पुराना ‘वाराणसी’ नाम दिया गया।

सन् 1964 – तुलसी मानस मन्दिर (दुर्गाकुण्ड के पास) का निर्माण हुआ।

प्राप्त स्त्रोतों द्वारा

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

व्योमवार्ता/ भारतीय इतिहास के नाम पर क्या परोसा गया....../व्योमेश चित्रवंश की डायरी,10जनवरी2023

🚩 *एक फिजिक्स के प्रोफेसर ने कक्षा 6 से 12 ncert की हिस्ट्री बुक्स के अध्ययन का निश्चय किया और उसने पाया कि लगभग 110 बातें ऐसी हैं जो संदिग्ध हैं!*  
       👉 जैसे कक्षा 6, सामाजिक विज्ञान के पृष्ठ 46 पर ऋग्वेद के आधार पर भारत के बारे में  लिखा है कि "आर्यों द्वारा कुछ लड़ाइयां मवेशी और जलस्रोतों की प्राप्ति के लिए लड़ी जाती थी। कुछ लड़ाइयां मनुष्यों को बंदी बनाकर बेचने खरीदने के लिए भी लड़ी जाती थी।"
स्पष्ट है कि किताब लिखने वाला यह साबित करना चाहता है कि भारत में भी गुलाम प्रथा थी और मनुष्यों को खरीदने बेचने की जो बातें बाइबल और कुरान में है वे कोई नई नहीं है, बल्कि वैसा ही अमानवीय व्यवहार भारत में भी होता था।
ऐसे ही वे आगे लिखते हैं "युद्ध में जीते गये धन का एक बड़ा हिस्सा सरदार और पुरोहित रख देते थे, शेष जनता में बांट दिया जाता था।" यहां भी मुहम्मद के गजवों को जस्टिफाई करने की भूमिका बनाई गई है।
आगे एक जगह लिखा है "पुरोहित यज्ञ करते थे और अग्नि में घी अन्न के साथ कभी कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।"
आगे पृष्ठ 60 पर लिखा है "खेती की कमरतोड़ मेहनत के लिए दास और दासी को उपयोग में लाया जाता था।"
तब उस प्रोफेसर ने पहले तो स्वयं अध्ययन किया, मेगस्थनीज की इंडिका आदि के आधार पर यह सिद्ध हुआ कि ये सब मनगढ़ंत लिखा जा रहा है, उसने ncert में आरटीआई डाली कि इन बातों का आधार क्या है? आप हिस्ट्री लिख रहे हैं, रेफरेंस कहाँ हैं? ऋग्वेद की सम्बंधित ऋचाएं, अनुवाद बताया जाए और यदि नहीं है तो खंडन या सुधार किया जाए।
जानकर आश्चर्य होगा कि ncert ने सभी 110 प्रश्नों का एक ही जवाब दिया कि हमारे पास इसका कोई प्रूफ नहीं है। इसके अलावा जवाब टालने और लटकाने का रवैया रखा। कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। हारकर वे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में गये कि ncert हमें इनका जवाब नहीं दे रही। कोर्ट ने पिटीशन स्वीकार कर लिया और ncert को जवाब देने के लिए कहा। तब ncert ने कहा कि हमारी सभी पुस्तकों का लेखन जेएनयू के हिस्ट्री के प्रोफेसर ने किया है और हमने उन्हें जवाब के लिए कह दिया है। लगभग एक वर्ष बाद जेएनयू के लेखकों ने जवाब दिया कि हमने इन बातों के लिए ऋग्वेद के अनुवाद का सहारा लिया है।
ऋग्वेद में इंद्र को एक यौद्धा बताया गया है और उसमें आये #नरजित शब्द से यह साबित होता है कि वे लूटपाट करते थे और मनुष्यों को गुलाम बनाते थे।
इस पर इस प्रोफेसर ने संस्कृत के जानकारों को वे मंत्र बताए कि क्या इनका यही अर्थ होता है जो  जेएनयू के प्रोफेसर ने किया है?
संस्कृत के विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि जेएनयू वालों का अर्थ मनमाना, कहीं कहीं तो मूल कथ्य से बिल्कुल उलटा है।
इस पर कोर्ट ने इन्हें पूछा कि क्या आप संस्कृत जानते हैं? आपने यह अनुवाद कहाँ से उठाया?
तो जेएनयू के कथित इतिहासकारों ने कहा कि वे संस्कृत का स भी नहीं जानते, उन्होंने एक बहुत पुराने अंग्रेज लेखक के ऋग्वेद के अनुवाद का इस्तेमाल किया है।
कोर्ट -"और जो आपने लिखा है कि लूट के माल को ब्राह्मण आदि आपस में बांट लेते थे, उसका आधार क्या है?"
जेएनयू -"चूंकि ऋग्वेद में अग्नि का वर्णन है और अग्नि को पुरोहित कहा गया है तो इसका अर्थ यही है कि जो जो अग्नि को समर्पित किया जा रहा है मतलब पुरोहित आपस में बांट रहे हैं।"
अब जेएनयू और ncert के इन तर्कों पर माथा पीटने के सिवाय कोई चारा नहीं है और वे शायद यही चाहते हैं कि हम माथा पीटते रहें!!
Ncert आगे कक्षा 11की हिस्ट्री में लिखती हैं "गुलामी प्रथा यूरोप की एक सच्चाई थी और ईसा की चतुर्थ शताब्दी में जबकि रोमन साम्राज्य का राजधर्म भी ईसाई था, गुलामों के सुधार पर #कुछ_खास_नहीं_कर_सका।
यहां ncert के लिखने के तरीके से छात्र यह समझते होंगे कि ईसाई धर्म गुलामी के खिलाफ है। जबकि सच्चाई यह है कि एक चौथाई बाइबल इन्हीं बातों से भरी हुई है कि गुलाम कैसे बनाने, उनके साथ कितना यौन व्यवहार करना, उन्हें कब कब मार सकते हैं, वगैरह वगैरह।
सच्चाई यह है कि ncert के 2006 के पाठ्यक्रम का एक मात्र उद्देश्य था हिन्दुधर्म को जबरदस्ती बदनाम करना, यानि जो नहीं है उसे भी हिंदुओं से जोड़कर प्रस्तुत करना और ईसाइयों की बुराइयों पर पर्दा डालकर भारत में उसके प्रचार के अनुकूल वातावरण बनाना।
सोनिया गांधी की तत्कालीन मंडली ने पूरी साजिश कर उक्त पाठ्यक्रम की रचना की थी और आज विगत 16 वर्ष से वही पुस्तकें चल रही है, एक अक्षर तक नहीं बदला गया।
और हां, उन प्रोफेसर का नाम आदरणीय नीरज अत्रि है। वे यूट्यूब पर हैं।
http://chitravansh.blogspot.com
(काशी,10जनवरी 2023,मंगलवार)
#नीरज_अत्री
#व्योमवार्ता

रविवार, 1 जनवरी 2023

व्योमवार्ता/ नये साल की पहली सुबह...../व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 1जनवरी 2023

नये साल की पहली सुबह/व्योमेश चित्रवंश की डायरी..

नये साल की पहली सुबह
ढेर सारे कुंहासे और धुंध से भरी
नही दिख रहे कोहरे से
सड़क पर चहलकदमी करते लोग
वे बच्चे भी नही
नये साल पर खुशियाँ मनाने वाले
आटो वाला टोपी पर मफलर बांधे
मुंह से धूंआ फेकते
कर रहा है सवारियों का इंतजार
धुले धुलाये आटो पर तिरंगा झण्डा संग
गैस वाला गुब्बारा लगाये
चूने से लिख कर 
हैप्पी न्यू ईयर 2023
चौराहे के एक कोने पर 
उजाड़ होते चितवन के नीचे 
जल रहे लकड़ी के बोटे के पास
खड़े बीट के सिपाहियों के संग
सिमटे सुकड़े बैठे है
काले भूरे कलुआ औ भूरा
उन्हे इंतजार है नुक्कड़ की दुकान पर
जलेबी कचौड़ी छनने और 
उसके फेंके हुये दोनो का
अखबार का बंडल बांधे 
निकल चुके है हाकर
मंदिर की सेवा करने वाले पंडितजी भी.
दोनो को जल्दी है खबरे पहुंचाने की
नेकी की दीवार के पास 
सोया पड़ा है मन्तोषवा
फिर कहीं से दारू पी कर
सब कुछ वैसे ही है
जैसे कल था
न कोरोना का खौफ
न कोई हड़बड़ी
घरों मे रजाई मे दुबके 
रविवार मना रहे लोगों को 
अब नही इंतजार है किसी 
बिग ब्रेकिंग का
सब कुछ सामान्य सा
हर कोई आराम से
चल रहा है
साल बदल रहा है
हम नही......
- #व्योमेश_चित्रवंश
(काशी,1जनवरी 2022, पौष शुक्ल दशमी सं०2079वि०)
#व्योमवार्ता




रविवार, 23 अक्तूबर 2022

व्योमवार्ता/ अबकी बार....(भरत मिलाप 23अक्टूबर 2015 की रचना)

आज शहर  में एक  अद्भुत घटना  घट गयी 
बीच  चौराहे पर रावण  ने हड़ताल  कर दी 
इस बार मैं नहीँ जलूँगा,चर्चा खुलेआम कर दी
एक पाप  के लिए  मुझे हर  साल जलाते  है 
पर आजकल  तो ये पाप  सरे-आम होता  है 
फिर  क्यों नही  उन  पापियों का दहन करते
मैंने तो  केवल  सीता  का हरण  किया  था 
अब तो  सीता  का  दामन  तार-तार  होता है 
सीता हरण तो मैंने स्वपन में भी नही सोचा था
बहन के प्रेम में पड़  कर ये अपराध  किया था 
पर अब ये अपराध तो बिलकुल आम हुआ है 
लंका में  रहकर भी सीता  दामन-ए-पाक थी 
अब तो घर में भी नारी का  चिर-हरण हुआ है 
हरण के बाद भी मैंने सीता का सम्मान किया था 
सम्मान तो  क्या, अब तो वह  सुरक्षित भी नही 
सदियों से,  युगों-युगों से  मेरा दहन होता रहा है 
दहन  तो  इस बार  भी  तुम  मेरा करना '
पर दहन सिर्फ राम करे,कोई दूसरा रावण नहीं

चौदह बरसों बाद भरत के राम आज अपनी नगरी वापस लौटेगें।
पर
 अपनी अयोध्या मे उजाला कब होगा ? 
मन की अयोध्या मे सीता रूपी आाशा और राम रूपी विश्वास के आगमन की शुभकामनाओं के साथ भरत मिलाप की ढेरों बधाईयॉ ।
(काशी,23अक्टूबर2015)

🙏🙏🙏🙏

शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

व्योमवार्ता/एक बाप का फैसला

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं.....

*एक बाप का फैसला*

"क्या बताऊँ मम्मी, आजकल तो , बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है| 
जबसे पापा जी रिटायर हुए है , दोनों लोग फिल्मी हीरो हीरोइन की तरह दिन भर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं| 
न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है न बहू बेटे का इस उम्र में दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं|
ठीक है मां मैं आपसे बाद में बात करती हूं शायद सासुमा आ रही हैं।"

  सासु मां ने बहू की बातें कमरे के बाहर सुन ली थी, 
पर नज़रअंदाज़ करते हुए खामोशी से चाय सोनम को दे दी| 

 सासू मां बहू सोनम को चाई देने के पश्चात पति देव अशोक जी के लिए चाय ले जाने लगी, 
ऐसा देखकर बहू सोनम के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान तैर गयी| 
पर सासू मां, समझदारी दिखाते हुए बहू की इस नाजायज हरकत को नज़र अंदाज़ करते हुए सिर झुकाए वन्हा से निकल गईं| 

पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उनकी यही दिनचर्या हो गयी थी|  
आजकल सासुमा प्रभा जी अपने पति देव अशोक जी को उनकी इच्छानुसार अच्छे से तैयार होकर अपने घर के सबसे खूबसूरत हिस्से में अपने पति देव के साथ झूले में बैठ कर उनको कंपनी देती थी।
 
प्रभाजी ने सारी उम्र तो उनकी बच्चों के लिए लगा दी थी|  

 कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवन भर का सपना था, जो उन्होंने बड़ी मेहनत से साकार किया था।

 
ऐसे मनमोहक वातावरण में वहां पर लगा झूला मन को असीम शांति प्रदान करता।

पहले वह और अशोक इस मनमोहक जगह में कम समय के लिए ही बैठ पाते थे।
प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े ज़िंदादिल शब्दों में कहते, 
"पार्टनर रिटायरमेंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खायेंगे| 
आपकी हर शिकायत हम दूर कर देँगे| 
फ़िलहाल हमें बच्चों के लिये जीना है| 
बच्चों के कैरियर पर बहुत कुछ बलिदान करना पड़ा, 
खेर अब बेटा अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी | 

रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी,
अशोक जी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था| 
पहले तो बड़े पद पर थे तो कभी उनके कदम घर में टिकते ही नहीँ थे|  

लेकिन उनकी बहू सोनम अपने पति नवीन को उसके माता पिता के लिये ताने देने का कोई मौका न छोड़ती| 

उसने उस कोने के बागीचे से छुटकारा पाने के लिये नवीन को एक रास्ता सुझाते हुए कहा,"क्योँ न हम बड़ी कार खरीद लें...नवीन"| 
 "आईडिया तो अच्छा है पर रखेंगे कहाँ एक कार रखने की ही तो जगह है घर में",नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला|

"जगह तो है न, वो गार्डन तुम्हारा..जहाँ आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं।"
सोनम व्यागतमक स्वर में बोली|  

"थोड़ा तमीज़ से बात करो,"
नवीन क्रोध से बोला।
लेकिन फिर भी सोनम ने अपने पति को पापा जी से बात करने का मन बना लिया।  

अगले दिन नवीन कुछ कार की तस्वीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला,
" पापा !मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं "  

"पर बेटा एक बड़ी गाड़ी तो घर में पहले ही है, फिर उस नई गाड़ी की रखेंगे भी कहाँ?"
अशोक जी ने प्रश्न किया|  
"ये जो बगीचा है यहीँ गैराज बनवा लेंगे वैसे भी सोनम से तो इसकी देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक देखभाल करेंगी? 
इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा| 
वैसे भी ये सब जड़े मज़बूत कर घर की दीवारें कमज़ोर कर रहें है|" 

यह सुनकर प्रभा तो वहीँ कुर्सी पर सीना पकड़ कर बैठ गईं,
अशोक जी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, 
मुझे तुम्हारी माँ से भी बात करके थोड़ा सोचने का मौका दो|  
क्या पापा... मम्मी से क्या पूछना ..वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है नवीन थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोला|  
"आप दोनों दिन भर इस जगह बगैर कुछ सोचे समझे,चार लोगों का लिहाज किये बग़ैर साथ में बैठे रहते हैं|
अब आप दोनों कोई बच्चे तो नहीं हो |  
लेकिन आप दोनों ने दिन भर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है और ये भी नहीँ सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे|  
इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने की बजाय आप अपनी उम्र के लोगों में उठा बैठी करेंगे तो वो ज़्यादा अच्छा लगेगा न कि ये सब।"
 और वह दनदनाते हुए अंदर चला गया| अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी ज़ारी थी।

अशोक जी कड़वी सच्चाई का एहसास कर रहे थे।

पर आज की बात से तो उनके साथ प्रभा जी भी सन्न रह गईं,
अपने बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर दोनों को दिल भर आया था और टूट भी चुका था।
 रिटायरमेंट को अभी कुछ ही समय हुआ जो थोड़ा सकून से गुजरा था।
पहले की ज़िन्दगी तो भागमभाग में ही निकल गयी थी, बच्चों के लिए सुख साधन जुटाने में|  
अशोक जी आज पूरी रात ऊहापोह में लगे रहे,
 कुछ सोचते रहे, कुछ समझते रहे और कुछ योजना बनाते रहे ।
लेकिन सुबह जब वे उठे तब बड़े शांत और प्रसन्न थे।

वे रसोई में गये और खुद चाय बनाई | 
कमरे में आकर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे|  
आपने क्या सोचा?प्रभा ने रोआंसे लहज़े में पूछा| 
 मैं सब ठीक कर दूँगा बस तुम धीरज रखो,अशोक बोले| पर हद से ज़्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं,और न ही किसी से कोई बात की|  

दिन भर सब सामान्य रहा,लेकिन शाम को अपने घर के बाहर To Let का बोर्ड टँगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोक से प्रश्न किया,"पापा माना कि घर बड़ा है पर ये To Let का बोर्ड किसलिए"? 
 " अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहें है,तो वो इसी घर में रहेँगे",
उन्होंने शान्ति पूर्ण तरीके से उत्तर दिया| हैरान नवीन बोला,
"पर कहाँ?" "तुम्हारे पोर्शन में",अशोक जी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया|  
नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था,"और हम लोग " "तुम्हे इस लायक बना दिया है दो तीन महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कम्पनी के फ्लैट में रह लेना,अपनी उम्र के लोगों के साथ | 
"अशोक एक- एक शब्द चबाते हुए बोल रहे थे|  
हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठे बैठेंगे।
 तुम्हारी माँ की सारी उम्र सबका लिहाज़ करने में निकल गयी| 
कभी बुजुर्ग तो कभी बच्चे| 
अब लिहाज़ की सीख तुम सबसे लेना बाकी रह गया थी| "पापा मेरा वो मतलब नहीँ था",नवीन सिर झुकाकर बोला|  

नही बेटा तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया,
जब हम तुम दोनों को साथ देखकर खुश हो सकते है तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्योँ है| "?  
इस मकान को घर तुम्हारी माँ ने बनाया, ये पेड़ और इनके फूल तुम्हारे लिए माँगी गयी न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं,
तो यह अनोखा कोना छीनने का अधिकार में किसी को भी नहीं दूँगा|  
पापा आप तो सीरियस हो गये, नवीन के स्वर अब नम्र हो चले थे|  
न बेटा... तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सहकर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज़ नहीँ है|
 इसलिये सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी माँ का ऋणी है| ।
घर तुम दोनों से पहले उसका है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दाँत|  
जब मंदिर में ईश्वर जोड़े में अच्छा लगता है तो मां बाप साथ में बुरे क्योँ लगते हैं? 
ज़िन्दगी हमें भी तो एक ही बार मिली है|
इसलिए हम इसे अपने हिसाब से एंजॉय करना चाहते हैं।
  #व्योमवार्ता

व्योमवार्ता/सिखाता नही कर के दिखाता हूं

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं......

#सिखाता_नही_कर_के_दिखाता_हूं...
'सर! मुझे चार दिनों की छुट्टी चाहिए, गांव जाना है!'-बॉस के सामने अपना आवेदन रखते हुऐ संदीप  ने कहा

'चार दिन! इकट्ठे! कोई खास बात है क्या?'--बॉस ने उत्सुकता वश पूछा।

'जी सर! पितृपक्ष चल रहा है ना, पिता को पिंडदान करना है!'

'क्या संदीप! कॉरपोरेट वर्ल्ड में काम करते हुए भी तुम्हारी सोच पिछड़ी की पिछड़ी रह गयी!'

'मैं समझा नहीं सर!'

'कहाँ पड़े हो इन झमेलों में! जानता हूँ, जीते जी खूब सेवा की है पिता की, माँ की सेवा के लिए अब तक बीवी-बच्चों को गांव में रख छोड़ा है! आखिर हासिल क्या होगा इनसे जीवन में!'

'एक पुत्र का जीवन उसके माँ-बाप का ही तो दिया होता है सर, उनकी सेवा में कुछ हासिल होने का कैसा लोभ!'

'मतलब नि:स्वार्थ!'

'पुत्रधर्म के पालन करने का आत्मसंतोष सर!'

चलो मान लिया! पर जो तुम ये इतना सब करते हो, क्या गारंटी है कि तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे लिए करेंगे!'

'गारंटी भौतिक चीजों के मामले में देखी जाती है सर! मैं स्वयं के धर्म के प्रति उत्तरदायी हूँ, उनका उन पर ही छोड़ देता हूँ! वैसे मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे नहीं भटकेंगे!'

'इस विश्वास की वजह! ये चीजें सिखाते हो क्या उनको?'

'सिखाता नहीं, कर के दिखाता हूँ सर, इसलिए विश्वास है!'

'फिर भी मान लो, वो तुम्हारी तरह ना निकलें, जमाने की हवा लग जाय! फिर...!'

'ये भी स्वीकार है सर! ना मान से आह्लादित होना है और ना अपमान से दु:खी! जीवन की झोली में नियति जो डाल देगी, खुशी से स्वीकार कर लूंगा!'

'कहना आसान है, पर जीवन में ये उतरता कहाँ है!'

'उतरता है सर, अगर हम सच में प्रयास करें! जीवन में ढेर सारी चाह होती है, थोड़ा सा उन्हें त्याग दें तो राह सूझ जाती है! जीवन को बुलबुले की तरह मानकर जीना शुरु कर दीजिये, बनने-बिगड़ने के डर से मुक्त हो जायेंगे।"
#व्योमवार्ता
#पिततृपक्ष

व्योमवार्ता/हमारा भी एक जमाना था....

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं ....
#हमारा_भी_एक_जमाना_था...
*हमें खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल, बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था।
*पास/ फैल यानि नापास यही हमको मालूम था... *परसेंटेज % से हमारा कभी संबंध ही नहीं रहा।
 *ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था।
*किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं, ऐसी हमारी धारणाएं थी।
 *कपड़े की थैली में बस्तों में और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में किताब, कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी।
*हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम लगभग एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था। 
*साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम।
*हमारे माताजी/ पिताजी को हमारी पढ़ाई का बोझ है ऐसा कभी लगा ही नहीं। 
*किसी दोस्त के साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी।इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे।
** स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना,पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना,और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था।
**घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनिक जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी।
*मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे। मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला है इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिये।

*बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है।

*हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं। साल में कभी-कभार एक आद बार मैले में जलेबी खाने को मिल जाती थी तो बहुत होता था उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे।
*छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे।
*दिवाली में लिए गये पटाखों की लड़ को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा।

*हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था।
*आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं क्या पता
*स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है।वह दोस्त कहां खो गए वह बेर वाली कहां खो गई....वह चूरन बेचने वाला कहां खो गया...पता नहीं।

* हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है।

*कपड़ों में सिलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन क्या था हमें अच्छे से मालूम ही नहीं...हम अपने नसीब को दोष नहीं देते जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है जो जीवन हमने जिया उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती।

** हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम पर हमारा भी एक जमाना था। वो बचपन हर गम से बेगाना था।
#व्योमवार्ता
#भूली_बिसरी_यादें

रविवार, 11 सितंबर 2022

#व्योमवार्ता : पिता का समाज व पुत्रों के नाम पत्र

#समाज_जिसमे_हम_रहते_हैं.....
😢😢
पिता का समाज व पुत्रों के नाम पत्र

लखनऊ के एक उच्चवर्गीय बूढ़े पिता ने अपने पुत्रों के नाम एक चिट्ठी लिखकर खुद को गोली मार ली। 
चिट्टी क्यों लिखी और क्या लिखा। यह जानने से पहले संक्षेप में चिट्टी लिखने की पृष्ठभूमि जान लेना जरूरी है।
पिता सेना में कर्नल के पद से रिटार्यड हुए । वे लखनऊ के एक पॉश कॉलोनी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनके दो बेटे थे। जो सुदूर अमेरिका में रहते थे। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि माता-पिता ने अपने लाड़लों को पालने में कोई कोर कसर नहीं रखी। बच्चे सफलता की सीढ़िंया चढते गए। पढ़-लिखकर इतने योग्य हो गए कि दुनिया की सबसे नामी-गिरामी कार्पोरेट कंपनी में उनको नौकरी मिल गई। संयोग से दोनों भाई एक ही देश में,लेकिन अलग-अलग अपने परिवार के साथ रहते थे। 
एक दिन अचानक पिता ने रूंआसे गले से बेटों को खबर दी। बेटे! तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं रही । पिता अपनी पत्नी की मिट्टी के साथ बेटों के आने का इंतजार करते रहे। एक दिन बाद छोटा बेटा आया, जिसका घर का नाम चिंटू था। 
पिता ने पूछा चिंटू! मुन्ना क्यों नहीं आया। मुन्ना यानी बड़ा बेटा।पिता ने कहा कि उसे फोन मिला, पहली उडान से आये। 
धर्मानुसार बडे बेटे का आना सोच वृद्व फौजी ने जिद सी पकड़ ली। 
छोटे बेटे के मुंह से एक सच निकल पड़ा। उसने पिता से कहा कि मुन्ना भईया ने कहा कि, "मां की मौत में तुम चले जाओ। पिता जी मरेंगे, तो मैं चला जाऊंगा।"
कर्नल साहब (पिता) कमरे के अंदर गए। खुद को कई बार संभाला फिर उन्होंने चंद पंक्तियो का एक पत्र लिखा। जो इस प्रकार था- 
प्रिय बेटो
          मैंने और तुम्हारी मां ने बहुत सारे अरमानों के साथ तुम लोगों को पाला-पोसा। दुनिया के सारे सुख दिए। देश-दुनिया के बेहतरीन जगहों पर शिक्षा दी। जब तुम्हारी मां अंतिम सांस ले रही थी, तो मैं उसके पास था।वह मरते समय तुम दोनों का चेहरा एक बार देखना चाहती थी और तुम दोनों को बाहों में भर कर चूमना चाहती थी। तुम लोग उसके लिए वही मासूम मुन्ना और चिंटू थे। उसकी मौत के बात उसकी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने लिए मैं था। मेरा मन कर रहा था कि काश तुम लोग मुझे ढांढस बधाने के लिए मेरे पास होते। मेरी मौत के बाद मेरी लाश के पास तुम लोगों का इंतजार करने के लिए कोई नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह कि मैं नहीं चाहता कि मेरी लाश निपटाने के लिए तुम्हारे बड़े भाई को आना पड़े। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि अपनी मां के साथ मुझे भी निपटाकर ही जाओ। मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिस समाज ने मुझे जीवन भर धन के साथ सम्मान भी दिया, मैंने समाज को असभ्य नागरिक दिये। हाँ अच्छा रहा कि हम अमरीका जाकर नहीं बसे, सच्चाई दब जाती। 
मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरे मैडल तथा फोटो बटालियन को लौटाए जाए तथा घर का पैसा नौकरों में बाटा जाऐ। जमापूँजी आधी वृद्ध सेवा केन्द्र में तथा आधी सैनिक कल्याण में दी जाऐ। तुम्हारा पिता                               

कमरे से ठांय की आवाज आई। कर्नल साहब ने खुद को गोली मार ली।
यह क्यों हुआ, किस कारण हुआ? कोई दोषी है या नहीं। मुझे इसके बारे में कुछ नहीं कहना। 
हाँ यह काल्पनिक कहानी नहीं। पूरी तरह सत्य घटना है।
#व्योमवार्ता

रविवार, 7 अगस्त 2022

व्योमवार्ता/महान भारत के महान राष्ट्रपति डॉ0ए0पी0जे0अब्दुलकलाम

#समाज_जिसमे_हम_रहते_हैं.....

(श्री अब्दुल कलाम से महान राष्ट्रपति ना हुआ है,ना ही भविष्य में हो सकता है,उनकी सज्जनता एवम् महानता से जुड़ा एक संस्मरण भारत के राष्ट्रपति के पूर्व एडीसी ले0कर्नल अशोक_किनी के शब्दों मे)

राष्ट्रपति भवन में शंकराचार्य जी

राष्ट्रपति भवन में शंकराचार्य जी की यह पहली यात्रा थी। राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम शंकराचार्य जी को उचित सम्मान देना चाहते थे। उन्होंने मुझे (मैं राष्ट्रपति जी का ADC था) अपने कार्यालय में बुलाया और मुझसे पारंपरिक प्रोटोकॉल के बारे में पूछा। मैंने उनसे कहा, "मैं राष्ट्रपति भवन के द्वार पर शंकराचार्य जी का स्वागत करूंगा और उन्हें अंदर लाऊंगा।"

           कुछ मिनटों के गहन सोच के बाद उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या होगा यदि मैं स्वागत करूं? तो मैंने कहा, "श्रीमान, आप संत के सम्मान को राष्ट्रपति के #सम्मान से ऊपर कर देंगे।
  वो मुस्कराए। उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। फिर मैंने ऑफिस के अंदर उन्हें बताया, "सर, मैं उन्हें यहां लाऊंगा। उनकी मृगछाल इस सोफे पर बिछाऊंगा और उनसे बैठने का अनुरोध करूंगा। आप राष्ट्रपति जी अपने सोफे कुर्सी पर बैठे रहेंगे।"
उन्होंने फिर मुझसे दूसरी बार पूछा, "क्या होगा यदि मैं उन्हें अपने सोफे की सीट पर बैठा दूं?"
   मैंने फिर कहा, "सर, आप संत को राष्ट्रपति से अधिक सम्मान देंगे।"
वह फिर मुस्कुराए और मुझे कोई आदेश नहीं दिया। तीस मिनट के बाद जब शंकराचार्य जी आने वाले थे तो कुछ सेकंड पहले मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब मैंने डॉ अब्दुल कलाम को गेट पर अपने पीछे खड़ा देखा। मैं तुरंत पीछे गया और डॉ. अब्दुल कलाम के पीछे खड़ा हो गया। वह वहां व्यक्तिगत रूप से एक माला और फूलों के साथ शंकराचार्य जी का #स्वागत करने के लिए खड़े थे। हमने शंकराचार्य जी का स्वागत किया। राष्ट्रपति भवन के गलियारों से गुजरते हुए हम सीधे कार्यालय में गए।
             मैं आगंतुकों के लिए निश्चित सोफे पर शंकराचार्य जी की मृगछाल बिछा रहा था तो जिसकी हमने पहले चर्चा की थी। डॉ अब्दुल कलाम ने मुझे मृगछाल को अपने सोफे की कुर्सी पर बिछाने का निर्देश दिया। इस सरल, विनम्र और महान भाव से मैं स्तब्ध रह गया। हमने शंकराचार्य जी को फल और फूलों की टोकरी भेंट की।
          भेंट के बाद मैंने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं चाहता था कि भारत के राष्ट्रपति की सोफा सीट को संत की आध्यात्मिक शक्ति का आशीर्वाद मिले ताकि जो कोई भी राष्ट्रपति बाद में यहां बैठे, उन्हें भी संतों का आशीर्वाद प्राप्त हो।"
     मैंने अपने आध्यात्मिक गुरु राष्ट्रपति कलाम के इन विचारों की प्रशंसा की और कहा
"सर, आप न केवल एक महान वैज्ञानिक हैं बल्कि इस वेष में एक संत भी हैं।"
हमेशा की तरह उन्होंने अपनी एक सार्थक मुस्कान दी।

       क्या आप एक महान देश के राष्ट्रपति की इस तरह की सज्जनता की कल्पना कर सकते है,क्या सभी महान पुरषों में एवम् देश के बड़े लोगो में भी इतनी सज्जनता नहीं होनी चाहिए......शायद ऐसा नहीं है, हम सब को ही इस प्रकरण से कुछ ना कुछ अवश्य सीखना ही चाहिए!
(काशी,7अगस्त 2022,रविवार)
#व्योमवार्ता
#डा0ए0पी0जे0अब्दुलकलाम  http://chitravansh.blogspot.com

शनिवार, 6 अगस्त 2022

व्योमवार्ता/यह भी जाने.......

समाज जिसमे हम रहते हैं.....
यह भी जाने......

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।
जबकि
 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।
जबकि
 26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।
जबकि
गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।
(काशी,6अगस्त 2022,शनिवार)
#व्योमवार्ता

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें....

व्योमवार्ता / भूली हुई यादें.......

           रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...
और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...
पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...
आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।
99.2, 98.6, 98.8.......
और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39, 
हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....
नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।
वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)
सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था
(काशी,4अगस्त2022,गुरूवार)
#भूली_हुई_यादें
#हमारे_जमाने_के_रिजल्ट
#व्योमवार्ता

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें.....

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें.....

जब हम स्कूल में पढ़ते थे ( 😳 ) उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था..!

तब कैमलिन की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और बुक स्टाल पर शीशी में स्याही भर कर रखी होती थी 5 पैसा दो और ड्रापर से खुद ही डाल लो ये भी सिस्टम था ...जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे ! 

कुछ लोग ड्रापर का उपयोग कान में तेल डालने में भी करते थे...😜

महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। 

सामने के जेब मे पेन टांगते थे और कभी कभी स्याही लीक होकर सामने शर्ट नीली कर देती थी जिसे हम लोग सामान्य भाषा मे पेन का पोंक देना कहते थे...पोंकना अर्थात लूज मोशन...😧

हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा कर लेता था !!

नीचे के हड्डा को घिस कर परफेक्ट करना भी एक आर्ट था !!

हाथ से निब नहीं निकलती थी तो दांतों के उपयोग से भी निब निकालते थे...दांत , जीभ औऱ होंठ भी नीला होकर भगवान महादेव की तरह हलाहल पिये सा दिखाई पड़ता था 😜

दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पर लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था..!

निब पैन कभी ना चले तो हम सभी ने हाथ से झटका देने के चक्कर में आजू बाजू वालों पर स्याही जरूर छिड़कायी होगी!!

कुछ बच्चे ऐसे भी होते ( मेरे जैसे ) थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे ताकि घरवालों को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है!!
#भूली_हुइ_यादें....  
(काशी,4अगस्त2022,गुरूवार)
#व्योमवार्ता
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रविवार, 24 जुलाई 2022

व्योमवार्ता / समाज जिसमें हम रहते है......

#समाज_जिसमे_हम_रहते_हैं.....


       आज कल #सोशल_मीडिया पर #जीएसटी लगाने के समर्थन में एक पोस्ट चल रही है।

*जीएसटी से कैसे बचें

*सरकार को मत कोसिये.. बल्कि दिमाग से काम करिये और जीएसटी से बचिये।*

१.जब भी बाहर जाओ पानी की बोतल अपने साथ घर से लेकर जाओ... बाहर की शॉप से पैक बोतल नहीं खरीदों।

२.यात्रा के समय अपने साथ चावल या पुलाव ले जाओ, बाहर होटल या माल से खाना खाना बंद कीजिए।

३.जो भी घर की किचन का समान, सब्जी -भाजी खरीदनी हो घर के पास के छोटे दुकान वालों या रेहड़ी वालो से खरीदें,, सुपर मार्केट में जाना बंद कीजिए।

४.शनिवार-इतवार को बड़े मॉल में जाना बंद कीजिए, इसके बजाय अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाईये, आपसी सम्बन्ध मजबूत कीजिये।

५.बड़े बड़े मल्टीप्लेक्स inox, pvr जैसे सिनेमाघर के बजाए सिंगल स्क्रीन सिनेमा पर जाकर पिक्चर देखिए..उनपर GST नही है।

६.सुबह-शाम को व्यायाम के बाद घर पर आकर चाय-कॉफ़ी पीजिए..hotels पर नही।

७.अगर कही बाहर घूमने जाते भी है तो किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर ठहरिये... रिसॉर्ट्स/ होटल/लॉज में मत ठहरिए।

8- पैक दुध दही, छाँछ, खरीदने के वजाय तबैले से दुध ख़रीदे उसी से घर मे ही दही और छाछ बनाये!

9-कोई भी पैक अनाज न ख़रीदे अनाज खुल्ले भी मिलते है वो यूज़ करें!

*Government ने ये इसलिए किया है कि हम सब अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों को महत्व ज्यादा दे सकें!*                  

*सकारात्मक सोचिए, सकारात्मक सोच से आप कुछ भी बदल सकते हैं! जन हित में जारी!!*

              कुछ लोग इसे #मोदी समर्थकों व #भाजपा #आईटी_सेल का पैंतरा बता रहे है तो कुछ लोग मुखर #आलोचना कर रहे हैं। परंतु आलोचना व #समर्थन से परे हो कर इस पोस्ट के #तर्कों से होने वाले प्रभाव को देखा जाये तो कहीं न कहीं वह #भारतीय #अर्थव्यवस्था के #सादे_जीवन_उच्च_विचार के निकट ले जाता है।
आज के #भौतिकवादी व्यवस्था मे #बाजार के हमारे जीवन के प्रत्येक क्षणों मे #घुसपैठ को देखते हुये निश्चित ही इसे पूर्णत: व्यवहारिक होने की कल्पना करना भी बेमानी है पर अगर इन तर्कों को व्यवहारिक जीवन मे अपना कर जीवन मे थोड़ा सा ही सही पर संतोष और सुख पाया जा सकता है तो अपनाने में क्या बुराई है?
(काशी, 24जुलाई 2022, रविवार)
#व्योमवार्ता
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मंगलवार, 19 जुलाई 2022

व्योमवार्ता/ समाज जिसमें हम रहते है.....

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं........

बात उन दिनों की है जब मंगल बाज़ार में छोले भटूरे 5 रु के दो होते थे। मकान छोटे मगर दिल बड़े होते थे। यह Space/Privacy जैसे शब्दों के तो माने भी नहीं पता थे क्योंकि छतें पड़ोसियों से जुड़ी होती थी और टायलेट तक सांझा होते थे। दूर के रिश्तेदारों के नाम तक पड़ोसियों को रटे होते थे। डेढ़ दर्जन के परिवार का 3 कमरों में ठाठ से बसर होता था। छुट्टियों में रिश्तेदारों का परिवार भी साथ होता था। काली दाल को घी में सूखे धनिए का छौंक लगा छक कर खाते थे, फिर आम और ठंडे दूध पीते छत पर बिस्तर बच्चे मिनटों में लगाते थे। सूर्य उदय से पहले उठ भी जाते थे। पैसे कम पर खुशियां बहुत थी। देव आनंद के डायलॉग से शामें कटती थी। ईगो,अहम् या नखरे कहांँ किसी में होते थे? VCR किराये पर लेकर रात भर पड़ोसियों के साथ मिल कर फिल्मे देखते थे, तेरा मेरा नहीं, सबकुछ हमारा कहलाता था। भाई की शादी में आया सामान, ननद की शादी में ही जाता था। शादी ब्याह अपने आप में त्योहार होते थे, बाहर से आए संबंधी पड़ोसियों के घर ही सोते थे। मांगे हुए गद्दे, मटर छीलते परिवार, कढ़ाई में पकती सब्ज़ियों ओर, पनीर और आइसक्रीम पर नज़र रखे फूफा जी, वाह क्या नज़ारे होते थे। घंटे भर की कुट्टी और मिनटों में अब्बा होते थे। बुआ मामा, चाचा और मासी के बच्चे सब भाई बहन कहलाते थे, उनके आगे की रिश्तेदार भी पूरी डिटेल से गिनवाते थे। सब बड़े भाई बहनों के कपड़े बिना शर्म के पहनते थे, बताया था ना कि ईगो और अहम् पास भी ना मंडराते थे। आज दौर बदल गया। छोले भटूरे खाने मंगल बाज़ार नहीं हल्दीराम जाने लगे हैं, पांच सौ का नोट बेफिक्र थमाने लगे हैं। मकान आलीशान, मन परेशान हो रहे हैं, कमरों से जुड़े टायलेट हैं फिर भी प्राइवेसी को रो रहे हैं। बच्चों से बड़ों तक को स्पेस चाहिए, बगल वाले घर में कौन रहता है, नाम तो बताइए? आज सबको अलग कमरा चाहिए, बीबी को पंखा पति को AC चाहिए। अब कौन गर्मी की छुट्टियों में किसी के घर बिताता है? अपने कहाँ vacation पर हैं, Facebook बताता है। फिक्र और वज़न बढ़ रहे हैं, आज पैसा और कैसे बढ़ाएं इसी फिक्र में घुल रहे हैं। आज 56 भोग खाते हैं, फिर पचाने बेमन से Gym जाते हैं। घर, गाड़ी, बैंक में जमा धन, खुशियों के सामान सब हैं, खुशियाँ बांटने वाले नहीं हैं। मामा चाचा के बच्चे अब Cousins और उनके आगे के Distant relatives हो गए हैं। Social media पर कई बहनें और Bro ज़रूर हो गए हैं, अब लोग समय बिताने के लिए Mall जाते हैं और Mall में shopping करने के लिए कपड़े खरीदते हैं। अब बच्चों को कोई cousin कपड़े नहीं देता क्योंकि लेने वाले का ईगो और अहम् पीछा नहीं छोड़ता। एक बार पहन कर Maid को zara के टापॅ देते हैं फिर उसीको “बड़ी Happening” कहकर ताना भी देते हैं। अब शादियों में भी रिश्तेदार बस मूंह दिखाने आते हैं, घर में नहीं उन्हें अब होटल में ठहराते हैं। सारे परिवार वाले अब मेकअप करवा,खुद मेहमानों की तरह जाते हैं। अब फूफा जी नहीं, खाने का ज़िम्मा Caterer उठाते हैं। दिखावे की दुनिया में रिश्ते नाते छूट गए, मेरे बचपन के साथी कहांँ गुम गए? अगर ज़िन्दगी से ब्लाक सभी रिश्ते अनब्लाक कर दें, तो खुशियों के पल मिल सकते हैं। पर बनावटी दुनिया मे बनावटी रिश्तों के बीच बनावटी ज़िन्दगी जी रहे है ... 
बस यही सच है ...
#व्योमवार्ता
#शोभितश्रीवास्तव की वाल से
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व्योमवार्ता/ समाज जिसमे हम रहते है....

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं 

                     लखनऊ के कैसरबाग की रहनेवाली 80 वर्षीया सुशीला त्रिपाठी जी को उनके तीन साल से पाले हुए खतरनाक नस्ल के पिटबुल कुत्ते ने अचानक हमला कर चीरफाड़ कर जीवित ही खा डाला। सुबह छैः बजे जब सुशीला जी का बेटा अंदर से दरवाजा बंद करवाकर जिम गया हुआ था और वे अपने दोनों कुत्तों पिटबुल व लैब्राडोर को छत पर टहला रहीं थीं उसी समय अचानक पिटबुल प्रजाति के कुख्यात कुत्ते ने उन पर प्राणघातक हमला कर दिया। इस परिवार में माँ बेटा सिर्फ यही दोनों लोग रहते थे एवं अंदर से दरवाजा बंद होने के कारण पड़ोसी उन्हें बचाने के लिए कुत्ते को पत्थर मारने के सिवा और कुछ नहीं कर सके और करीब डेढ़ घंटे तक यानि सुबह छैः बजे से साढ़े सात बजे तक कुत्ता जीवित महिला को नोच नोचकर खाता रहा। पड़ोसियों के बार बार कॉल करने पर भी जब बेटे ने कॉल रिसीव नहीं की तो पड़ोसियों ने स्वयं उसके जिम जाकर उसे सूचना दी। बेटे के आने पर उसका लाड़ला कुत्ता अपनी शरारत पर शरमाकर एक कमरे में छुप गया और काफी देर तक नहीं निकला । अस्पताल ले जाए जाने पर महिला को मृत घोषित कर दिया गया।

इस घटना में मुझे सबसे अजीब बात यह लगी कि बेटे द्वारा लाया गया यह कुत्ता इससे पहले भी सुशीला जी पर हमला कर चुका था पर फिर भी उन्होंने इसे घर में रखना जारी रखा। कुत्ता पाला भले ही बेटे ने था पर उसकी देखभाल माताजी ही करतीं थीं व भोजन आदि भी स्वयं खिलाती थीं। तब भी इस राक्षसी प्रवृत्ति के प्राणी ने उनका यह हाल किया। शिक्षा- वहशी से मोह ममता की आशा करना व्यर्थ है।

एक और चौंकानेवाली बात। बेटे ने इस पूरी घटना में कुत्ते को निर्दोष ठहराया है । यानि जिस कुत्ते ने जन्म देनेवाली माँ को ऐसी भयावह मौत दी उससे उनके सपूत को कोई शिकायत नहीं है। बल्कि माँ की मौत पर अफसोस करने की बजाय वह कुत्ते को ही दुलारता पुचकारता रहा । ये देखकर लोग हैरान रह गए। अपने दोषी से प्रेम करने की इसी बीमारी को 'स्टॉकहोम सिंड्रोम' कहते हैं। हमारे समाज के ज्यादातर लोग अपने रिश्तों में आजकल इसी बीमारी के शिकार हैं। खुद को तकलीफ देनेवाले,धोखा देनेवाले से प्रेम करना,उन पर विश्वास करना लोगों को एक अलग तरह की सैडिस्टिक किक देती है। "यह घटना उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो ऐसे खतरनाक लोगों पर निरंतर विश्वास कर अपनी और अपने लोगों की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं जिनकी गद्दारी और नृशंसता की घटनाओं से संपूर्ण सभ्यता का इतिहास रक्तरंजित हुआ पड़ा है।"

वृद्धा माताजी की इस निर्मम हत्या का बहुत दुख है पर एक बात समझ नहीं आती। गाय के गोबर से घर लीपने पर घिन माननेवाले लोगों को दोनों टाइम कुत्ते को मल विसर्जित कराने के लिए कुत्ते की जंजीर पकड़कर स्वयं कुत्ते की तरह यहाँ वहाँ टहलने पर घिन क्यों नहीं आती? गाय को एक रोटी प्रतिदिन खिलाने से महँगे आशीर्वाद आटा वाले जिन घरों का बजट वेंटिलेटर पर चला जाता है वे इन राक्षसी कुत्तों को प्रतिदिन आधा किलो माँस कैसे उपलब्ध कराते हैं? जिम में पसीना बहाकर कमाया हुआ पैसा इस हैवान को रोजाना माँस खिलाने में लगा रहे थे पर गौसेवा की हरी घास के लिए अगर महीने में एक बार भी पाँच सौ रुपए माँग लिए जाते तो यही सुपुत्र पूरी लेजर खुलवा लेते। और इतना सब होने पर भी कुत्ते को निर्दोष ही ठहरा रहे हैं। शायद लखनऊ नगर निगम इन्हें लाइसेंस जारी कर दे तो ये अब भी इसी राक्षस को साथ ही रखना चाहेंगे। धन्य हैं ऐसी कलयुग की संतानें।
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व्योमवार्ता/ समाज जिसमे हम रहते है....

#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं

*रिटायरमेंट के बाद का दर्द*

छत्तीसगढ़ के शहर कोरबा में बसे नेहरू नगर में एक आईएएस अफसर रहने के लिए आए जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड आईएएस अफसर हैरान-परेशान से रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। *एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार उनके पास बैठने लगे लेकिन उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था - मैं  रायपुर में इतना बड़ा आईएएस अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं। मुझे तो बिलासपुर में बसना चाहिए था- और वो बुजुर्ग प्रतिदिन शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे। परेशान होकर एक दिन जब बुजुर्ग ने उनको समझाया* - आपने कभी *फ्यूज बल्ब* देखे हैं? बल्ब के *फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था या कितने वाट का था या उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी?* बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती है। लोग ऐसे‌ *बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं है‌ कि नहीं! फिर जब उन रिटायर्ड‌ आईएएस अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया* तो‌ बुजुर्ग फिर बोले‌ - रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रुतबा‌ था,‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌। मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने  ठाकुर जी बैठे हैं, एस .सी .सी.एल .के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे मरकाम साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो देवांगन.. जी इसरो में चीफ थे। *ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं पर मैं जानता हूं सारे फ्यूज़ बल्ब करीब - करीब एक जैसे ही हो जाते हैं*, चाहे जीरो वाट का हो या 50 या 100 वाट हो। कोई रोशनी नहीं‌ तो कोई उपयोगिता नहीं। *उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌।* कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ *रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं - रिटायर्ड आइएएस‌/रिटायर्ड आईपीएस/रिटायर्ड पीसीएस/ रिटायर्ड जज‌ आदि - आदि। अब ये‌ रिटायर्ड IAS/IPS/PCS/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/डाक्टर / अध्यापक.. कौन.. कौन-सी पोस्ट होती है भाई?माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, *बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? अब यह बात मायने नहीं रखती है बल्कि मायने‌ रखती है‌ कि पद पर रहते समय आप इंसान कैसे‌ थे...आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ... *आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी...समाज को क्या दिया,जाति बन्धुओं के कितने काम आएं* लोगों की मदद की..या सिर्फ घमंड मे ही सूजे हुए रहे. .पद पर रहते हुए कभी घमंड आये तो बस याद कर लीजिए कि एक दिन

..............सबको फ्यूज होना है।

(काशी 19जुलाई 2022, मंगलवार)
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